नई दिल्ली: भारत ने अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को बढ़ाने और अपने विनिर्माण क्षेत्र को वैश्विक निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बनाने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है, यह बात एसएंडपी ग्लोबल की एक रिपोर्ट में सोमवार को कही गई।
हालांकि भारत की वास्तविक जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान केवल 17.2 प्रतिशत है, लेकिन सरकार ने घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की भूमिका को मजबूत करने के लिए लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप किए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक व्यापार में बढ़ते संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) से भारत को आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने का अवसर मिल सकता है, जो दीर्घकालिक रूप से लाभकारी हो सकता है।
जैसे-जैसे वैश्विक व्यापार और सहयोग का परिदृश्य बदल रहा है, भारत इन अवसरों का अधिकतम लाभ उठाने की स्थिति में है। पिछले तीन दशकों में भारत ने आकार, पैमाने और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के स्तर पर उल्लेखनीय वृद्धि की है और वित्त वर्ष 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है।
"इंडिया फॉरवर्ड: ट्रांसफॉर्मेटिव पर्सपेक्टिव्स" शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बदलती व्यापार नीतियों और शुल्क (टैरिफ) संबंधी चुनौतियों के बीच भारत तेजी से विनिर्माण वृद्धि और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में गहरी भागीदारी का लाभ उठा सकता है।
भारत अब वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है ताकि एक स्वच्छ और आत्मनिर्भर परिवहन भविष्य की ओर बढ़ा जा सके।
रिपोर्ट में कहा गया कि बायोफ्यूल (जैव ईंधन) का बढ़ता उपयोग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बायोफ्यूल भारत की ऊर्जा सुरक्षा, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और कृषि क्षेत्र के लिए आय के अवसरों में वृद्धि—इन तीनों प्रमुख उद्देश्यों को एक साथ संबोधित करता है।
इसके साथ ही भारत अब एक ऐसे मार्ग पर अग्रसर है, जहां ऊर्जा सुरक्षा और राजस्व सुरक्षा एक साथ संभव हो सके। हालिया नियामकीय बदलावों ने कच्चे तेल की खोज और उत्पादन को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान किया है, जिससे देश ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत की बाहरी व्यापार पर मध्यम निर्भरता है, जो वैश्विक व्यापार परिवर्तनों और शुल्क नीतियों से इसे पूरी तरह अप्रभावित तो नहीं करती, लेकिन कुछ हद तक सुरक्षा जरूर देती है।
With inputs from IANS