कम महंगाई से भारत में क्रय शक्ति में वृद्धि और राजकोषीय स्थिति को मिलेगा बल: HSBCBy Admin Mon, 26 May 2025 06:08 AM

नई दिल्ली — वर्ष के बाकी हिस्से में महंगाई दर कम रहने से भारत में आम लोगों की वास्तविक क्रय शक्ति में सुधार होगा और कॉरपोरेट सेक्टर के लिए इनपुट लागत घटेगी। इसके साथ ही एक कम चर्चित लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण फायदा राजकोषीय स्थिति पर भी देखने को मिलेगा। यह बात HSBC रिसर्च की एक रिपोर्ट में सोमवार को कही गई।

रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले छह महीनों में महंगाई दर औसतन 2.5 प्रतिशत रहने की संभावना है, जिससे आर्थिक स्थिरता को बल मिलेगा।

HSBC की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी गोदामों में पर्याप्त अनाज भंडारण और अनुकूल मानसून की संभावना के चलते खाद्य मुद्रास्फीति नियंत्रित रहेगी। वहीं कोर मुद्रास्फीति भी स्थिर रह सकती है, जिसका कारण कमोडिटी कीमतों में नरमी, मंदी के संकेत, मजबूत रुपया (अमेरिकी डॉलर के मुकाबले), और चीन से आयातित डिसइंफ्लेशन है।

रिपोर्ट में देश के 100 प्रमुख आर्थिक संकेतकों का आकलन किया गया है, जो विभिन्न क्षेत्रों की गतिविधियों का क्रमबद्ध और व्यापक चित्र प्रस्तुत करते हैं।

हालांकि वित्त वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटा लक्ष्य पर कुछ दबाव हो सकता है — जैसे कि अपेक्षा से कम सांकेतिक जीडीपी वृद्धि, प्रत्यक्ष कर संग्रह में सुस्ती, और रक्षा व्यय में वृद्धि।

लेकिन इसके कुछ संतुलनकारी कारक भी हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय है भारतीय रिजर्व बैंक का अपेक्षा से अधिक लाभांश (₹2.7 लाख करोड़)। साथ ही सरकार के पास यह विकल्प भी है कि वह वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट का पूरा लाभ जनता को देने के बजाय तेल उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर कुछ राजस्व खुद रख सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार,

“चूंकि मुद्रास्फीति पहले से ही कम है, यदि सरकार तेल की कीमत में गिरावट से प्राप्त लाभ का आधा भी अपने पास रखती है, तो वह न केवल राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल कर सकती है बल्कि अतिरिक्त विकास व्यय के लिए संसाधन भी जुटा सकती है।”

HSBC के अनुसार, जनवरी-मार्च तिमाही (Q4 FY24 / Q1 FY25) पहले से थोड़ी बेहतर रही, जहां 66% आर्थिक संकेतकों में सकारात्मक वृद्धि देखी गई — जो पिछली दो तिमाहियों में क्रमशः 64% और 61% थी।

इस दौरान अप्रचारित क्षेत्र (Informal Sector) की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, जो कि राज्य सरकारों के पूंजीगत खर्च, अच्छी रबी फसल, वास्तविक ग्रामीण मजदूरी में बढ़ोतरी, और ग्रामीण व्यापार शर्तों में सुधार जैसे कारकों से प्रेरित रही।

वहीं शहरी खपत के संकेतकों — जैसे उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन और आयात — में कुछ नरमी देखी गई।

अप्रैल के आंकड़ों के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि

“अब तक हमें अप्रैल महीने की एक-तिहाई आर्थिक गतिविधियों से जुड़े डेटा मिले हैं, जिनमें से 64% संकेतक सकारात्मक वृद्धि दर्शा रहे हैं। ऐसा लगता है कि अप्रचारित क्षेत्र की खपत में और तेजी आई है (जिसे घरेलू गैर-सेस जीएसटी से मापा गया)।”

 

With inputs from IANS