रांची: पारंपरिक आदिवासी धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर मंगलवार को झारखंड में विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा बुलाए गए राज्यव्यापी बंद का व्यापक असर देखने को मिला। रांची समेत कई जिलों में आम जनजीवन प्रभावित हुआ और प्रमुख सड़कों पर आवागमन पूरी तरह बाधित रहा।
यह बंद आदिवासी बचाओ मोर्चा और सिरमटोली बचाओ मोर्चा जैसे संगठनों के नेतृत्व में बुलाया गया था। इन संगठनों ने रांची के केंद्रीय सर्ना स्थल समेत अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों पर कथित अतिक्रमण और अवैध निर्माण के विरोध में प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों ने मरांग बुरू, लुगू बुरू, पारसनाथ, मूधर पहाड़ी (पिठोरिया), महदानी सर्ना स्थल (तामाड़ और बेड़ो) जैसे कई पवित्र स्थलों की रक्षा की मांग भी की।
रांची, गुमला, रामगढ़, हजारीबाग, लातेहार और पूर्वी सिंहभूम जिलों में समर्थकों ने कई स्थानों पर सड़कों और राष्ट्रीय राजमार्गों को जाम कर दिया।
प्रमुख सड़क अवरोधों में शामिल हैं:
रांची जिले में खेलगांव चौराहा, अर्गोड़ा, मोराबादी, कांके, ओरमांझी, कद्रू, टाटीसिलवे, रातू, और मांडर जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शनकारियों ने पारंपरिक हथियारों और डंडों के साथ टायर जलाकर रास्ता रोका।
पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला, चकुलिया, गालूडीह, और बहरागोड़ा में दुकानों को बंद करवाया गया और सड़कों पर नारेबाजी करते हुए रैली निकाली गई।
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने रांची में 2,000 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में गश्त बढ़ा दी।
पूर्व मंत्री गीता श्री उरांव, जो रांची में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही थीं, ने राज्य सरकार पर आदिवासी भावनाओं की अनदेखी का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, “सिरमटोली के पास बनने वाले फ्लाईओवर की रैंप ने हमारे पवित्र सर्ना स्थल को अतिक्रमित कर दिया है। हम जनवरी से विरोध कर रहे हैं, लेकिन खुद को आदिवासी हितैषी बताने वाली सरकार अब तक कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।”
आदिवासी संगठनों का कहना है कि राज्य में चल रही विकास परियोजनाएं उनके पवित्र स्थलों की पवित्रता और अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं। ये स्थल केवल धार्मिक नहीं बल्कि उनकी संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं।
प्रदर्शनकारियों के अनुसार, यह आंदोलन केवल जमीन या निर्माण का मुद्दा नहीं है, बल्कि आदिवासी परंपरा, आस्था और विरासत की रक्षा की लड़ाई है।
With inputs from IANS