
नई दिल्ली- भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने से जुड़ी याचिका पर अपना फैसला सुनाएगी। इस कानून की याचिकाकर्ताओं ने तीखी आलोचना की है, जबकि केंद्र सरकार ने इसे वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और उनके प्रबंधन में पारदर्शिता लाने का आवश्यक कदम बताया है।
मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने 22 मई को दोनों पक्षों की तीन दौर की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।
संशोधित अधिनियम, जिसे 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और उसी दिन से लागू हो गया, को एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद सहित कई पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन भेदभावपूर्ण है और मुस्लिम समुदाय को अन्यायपूर्ण ढंग से निशाना बनाता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस कानून को “असंवैधानिक” और “मनमाना” बताया। उन्होंने खास तौर पर उस प्रावधान का विरोध किया है, जिसमें जांच के दौरान किसी संपत्ति की वक्फ स्थिति निलंबित की जा सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने अपनी दलीलों में वक्फ की धार्मिक और सामाजिक महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “वक्फ केवल एक कानूनी इकाई नहीं, बल्कि मुसलमानों के जीवन से गहराई से जुड़ा एक आध्यात्मिक और सामाजिक संस्थान है।” धवन ने यह भी तर्क दिया कि कोई बाहरी प्राधिकारी या अधिकारी यह तय नहीं कर सकता कि मूल धार्मिक प्रथा क्या है।
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ मूल रूप से कोई धार्मिक प्रथा नहीं है। उनके अनुसार, वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों का प्रशासनिक और धर्मनिरपेक्ष तरीके से संचालन करते हैं।
नया कानून, वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन कर लाया गया है, ताकि वक्फ संपत्तियों — यानी इस्लामी कानून के अंतर्गत केवल धार्मिक या चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों — के नियमन को सख्त किया जा सके।
17 अप्रैल को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था, जब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि विवादित प्रावधानों को फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा।
With inputs from IANS