
नई दिल्ली – केंद्र सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ) में मत्स्य संसाधनों के सतत उपयोग के लिए नए नियम जारी किए हैं, जिनका उद्देश्य गहरे समुद्री मत्स्य पालन को प्रोत्साहित करना और मूल्य संवर्धन, ट्रेसबिलिटी (traceability) और सर्टिफिकेशन पर जोर देकर समुद्री उत्पादों के निर्यात को बढ़ाना है।
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने बताया कि इन नियमों में मछुआरा सहकारी समितियों और फिश फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशंस (FFPOs) को प्राथमिकता दी गई है ताकि वे गहरे समुद्र में आधुनिक जहाजों के साथ मत्स्य संचालन कर सकें।
मंत्रालय के अनुसार, यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “भारत के समुद्री क्षेत्र की अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करने” की प्रतिबद्धता से प्रेरित है और केंद्रीय बजट 2025–26 में की गई उस घोषणा को साकार करती है, जिसमें भारतीय EEZ और उच्च समुद्री क्षेत्रों में सतत मत्स्य पालन के लिए सक्षम ढांचा तैयार करने की बात कही गई थी, विशेष रूप से अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपों पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह, जो मिलकर भारत के कुल EEZ क्षेत्र का लगभग 49 प्रतिशत हिस्सा हैं, में मदर-चाइल्ड वेसल प्रणाली अपनाने से उच्च गुणवत्ता वाली मछलियों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
सरकार मछुआरों और उनकी सहकारी समितियों/एफएफपीओ को प्रशिक्षण कार्यक्रमों, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन यात्राओं, तथा मूल्य श्रृंखला में क्षमता निर्माण — प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, विपणन, ब्रांडिंग और निर्यात — के माध्यम से व्यापक सहयोग देगी।
सस्ती और सुलभ ऋण सुविधा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और फिशरीज एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (FIDF) जैसी प्रमुख योजनाओं के तहत उपलब्ध कराई जाएगी।
नए EEZ नियमों में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए एलईडी लाइट फिशिंग, पेयर ट्रॉलिंग और बुल ट्रॉलिंग जैसी हानिकारक प्रथाओं पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है ताकि मत्स्य संसाधनों का समान और टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
जैव विविधता संरक्षण के लिए विभिन्न मछली प्रजातियों के न्यूनतम कानूनी आकार निर्धारित किए जाएंगे और मत्स्य प्रबंधन योजनाएं (Fisheries Management Plans) राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर तैयार की जाएंगी, ताकि घटती मछली प्रजातियों को पुनर्स्थापित किया जा सके।
इसके अलावा, सी-केज फार्मिंग और सीवीड (समुद्री शैवाल) खेती जैसी मैरिकल्चर गतिविधियों को वैकल्पिक आजीविका के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा ताकि तटीय क्षेत्रों में मत्स्य दबाव कम हो सके और उत्पादन बढ़ाया जा सके बिना पर्यावरणीय संतुलन बिगाड़े।
इन उपायों से छोटे मछुआरों और उनकी सहकारी समितियों को गहरे समुद्री संसाधनों तक पहुंच मिलेगी, उनकी आमदनी बढ़ेगी और वे टूना जैसी उच्च मूल्य वाली प्रजातियों का निर्यात अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कर सकेंगे।
इस पहल से भारत के समुद्री मत्स्य क्षेत्र में आधुनिक अवसंरचना के विकास और मिड-सी ट्रांसशिपमेंट की सुविधा को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नियमों के तहत निगरानी तंत्र के साथ संचालित होगी।
भारत की 11,099 किलोमीटर लंबी तटरेखा और 23 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक EEZ क्षेत्र देश के 50 लाख से अधिक मछुआरों और उनके परिवारों की आजीविका का आधार है।
With inputs from IANS