‘अभूतपूर्व परिचालन ढहाव’: इंडिगो संकट पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई PIL, न्यायिक हस्तक्षेप की मांगBy Admin Sat, 06 December 2025 05:55 AM

नई दिल्ली — इंडिगो एयरलाइंस द्वारा पिछले कुछ दिनों में 1,000 से अधिक उड़ानें रद्द करने के बाद उत्पन्न हुए “अभूतपूर्व परिचालन ढहाव” को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें अदालत से त्वरित न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है।

‘इंडिगो ऑल पैसेंजर एंड अनदर’ की ओर से अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा द्वारा दायर इस याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से इस संकट पर स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने इसे नागरिकों के मौलिक अधिकारों—विशेषकर जीवन और गरिमा के अधिकार (अनुच्छेद 21)—का गंभीर उल्लंघन बताया है।

याचिका के अनुसार, बड़े पैमाने पर उड़ान रद्द होने और भीषण देरी के कारण प्रमुख हवाई अड्डों पर स्थिति “मानवीय संकट” में बदल गई है। वरिष्ठ नागरिकों, शिशुओं और चिकित्सीय सहायता की आवश्यकता वाले यात्रियों को कथित रूप से भोजन, पानी, विश्रामस्थल और आपातकालीन सहायता तक उपलब्ध नहीं कराई गई।

याचिका में कहा गया:
“स्थिति एयरलाइन और उपभोक्ता के बीच साधारण संविदात्मक विवाद से आगे बढ़ चुकी है। यह अब जनता को गंभीर नुकसान और संविधान के अनुच्छेद 21 के स्पष्ट उल्लंघन का मामला बन गई है।”

इंडिगो ने सार्वजनिक रूप से इन व्यवधानों का कारण पायलटों के लिए संशोधित फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) के फेज-II के लागू होने के दौरान हुई योजना संबंधी त्रुटियों को बताया है।

हालांकि, याचिका का दावा है कि न तो एयरलाइन और न ही DGCA ने कोई प्रभावी पूर्वानुमानित निगरानी की।

इसके अलावा, कई प्रमुख मार्गों पर 50,000 रुपये से ऊपर पहुँच चुके किराए को यात्रियों को “बंधक बनाने” जैसा बताया गया है, जिसने “सस्ती हवाई यात्रा के मूल वादे को नष्ट कर दिया।”

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से एक विशेष पीठ गठित कर मामले की त्वरित सुनवाई की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से निर्देश देने का आग्रह किया है कि:

  • इंडिगो मनमानी उड़ान रद्दीकरण तुरंत बंद करे

  • सभी फंसे हुए यात्रियों को नि:शुल्क वैकल्पिक यात्रा व्यवस्था दे — जिसमें अन्य एयरलाइंस या ट्रेनों में सीटें शामिल हों

  • DGCA और नागरिक उड्डयन मंत्रालय विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें, जिसमें नए FDTL मानदंडों का पूरा पाठ और इंडिगो की अनुपालन निगरानी की योजना हो

याचिका में कहा गया है कि लाखों नागरिक अचानक बुनियादी सुविधाओं से वंचित हो गए, और “केवल त्वरित न्यायिक निगरानी ही जवाबदेही और नागरिक उड्डयन प्रणाली में जनता का विश्वास बहाल कर सकती है।”

 

With inputs from IANS