‘स्वतंत्रता सेनानियों और सशस्त्र बलों को नमन’: गोवा मुक्ति दिवस पर राष्ट्रपति मुर्मू ने राष्ट्र का नेतृत्व करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित कीBy Admin Fri, 19 December 2025 03:41 AM

नई दिल्ली- गोवा मुक्ति दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने औपनिवेशिक शासन से गोवा को मुक्त कराने के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले वीरों को याद करते हुए राष्ट्र का नेतृत्व किया और उन स्वतंत्रता सेनानियों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनके बलिदान से गोवा का भारत में एकीकरण संभव हो सका।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, “गोवा मुक्ति दिवस पर राष्ट्र उन वीरों को कृतज्ञता के साथ याद करता है, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन से गोवा की मुक्ति के लिए अथक संघर्ष किया। हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों और सशस्त्र बलों के अटूट संकल्प और निष्ठा को नमन करते हैं। मैं गोवा के लोगों के उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य की कामना करती हूं।”

इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी गोवा के लोगों को शुभकामनाएं दीं।

उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, “गोवा मुक्ति दिवस पर गोवा के लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं। आज की पीढ़ी शायद यह नहीं जानती कि 1961 तक भारतीयों को गोवा जाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती थी। प्रभाकर वैद्य, बाला राया मापरी, नानाजी देशमुख जी और जगन्नाथ राव जोशी जी जैसे अनेक महान व्यक्तित्वों ने इसका विरोध किया और गोवा की मुक्ति के लिए संघर्ष किया। हमारे देशभक्तों के महान बलिदानों के बाद गोवा भारत का अभिन्न अंग बना। गोवा की स्वतंत्रता के लिए असहनीय कष्ट सहने वाले सभी महान आत्माओं को मैं कृतज्ञता के साथ नमन करता हूं।”

कांग्रेस पार्टी ने भी इस दिन को चिह्नित करते हुए ‘एक्स’ पर लिखा, “गोवा, दमन और दीव मुक्ति दिवस वह ऐतिहासिक क्षण है, जब इन क्षेत्रों को पुर्तगाली शासन से मुक्ति मिली। यह स्वतंत्रता सेनानियों के साहस और भारतीयों के सामूहिक संकल्प का उत्सव है, जिसने इन क्षेत्रों को भारतीय संघ में शामिल सुनिश्चित किया।”

19 दिसंबर गोवा के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि इसी दिन 1961 में गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कर औपचारिक रूप से भारत में विलय किया गया था। उल्लेखनीय है कि गोवा पर पुर्तगाल का शासन लगभग 451 वर्षों तक रहा, जो देश में औपनिवेशिक शासन की सबसे लंबी अवधियों में से एक था।

जहां भारत के अधिकांश हिस्सों को 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, वहीं पुर्तगाल ने गोवा को न तो स्वतंत्रता देने पर सहमति जताई और न ही भारत में विलय की अनुमति दी। पुर्तगाली प्रशासन का दावा था कि गोवा सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से अलग है और वह उपनिवेश नहीं, बल्कि पुर्तगाल का अभिन्न हिस्सा है।

औपनिवेशिक शासन के अंत के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत की। भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा संचालित यह सैन्य अभियान लगभग 36 घंटे तक चला और इसमें थल, जल और वायु—तीनों मोर्चों पर समन्वित कार्रवाई की गई।

गोवा की मुक्ति के संघर्ष में कई नेताओं और नागरिकों ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ आंदोलनों और प्रदर्शनों के माध्यम से सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें टी.बी. कुन्हा को ‘गोवन राष्ट्रवाद के जनक’ के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने गोवा में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ पहला संगठित आंदोलन शुरू किया। महात्मा गांधी के साम्राज्यवाद विरोधी जन आंदोलनों के दौरान, कुन्हा फ्रांस में शिक्षा पूरी करने के बाद भारत लौटे और गोवा की स्वतंत्रता के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया।

 

With inputs from IANS