
नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने एक स्वदेशी और किफायती क्षारीय (अल्कलाइन) समुद्री जल इलेक्ट्रोलाइज़र विकसित किया है, जो दुर्लभ धातुओं पर निर्भर हुए बिना हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकता है।
यह तकनीकी उपलब्धि न केवल वर्तमान तकनीकों की ऊँची लागत को संबोधित करती है, बल्कि बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन उत्पादन के लिए मीठे पानी की कमी जैसी गंभीर समस्या का भी समाधान प्रस्तुत करती है।
नई तकनीक में ऐसा किफायती उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) इस्तेमाल किया गया है जो समुद्री जल से होने वाले क्षरण (corrosion) का प्रतिरोध करता है और प्रभावी ढंग से हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का उत्पादन करता है।
हाइड्रोजन उत्पादन के लिए समुद्री जल के उपयोग में सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती उसमें उपस्थित उच्च क्लोराइड स्तर है, जो इलेक्ट्रोड—विशेष रूप से एनोड—को नुकसान पहुंचाता है और रूपांतरण की दक्षता घटा देता है।
जहाँ पारंपरिक उत्प्रेरक महंगी और दुर्लभ धातुओं जैसे रूथेनियम व इरिडियम पर निर्भर रहते हैं, वहीं इस नई तकनीक में क्षारीय समुद्री जल का उपयोग किया गया है और सस्ते, आसानी से उपलब्ध धातु-आधारित कैटेलिस्ट व सेपरेटर लगाए गए हैं।
भौतिकी विभाग के प्रोफेसर एस. रामप्रभु ने आईएएनएस से कहा: “शुद्ध या मीठे पानी की जगह हमने क्षारीय समुद्री जल का उपयोग किया और संक्रमण धातु (transition metal)-आधारित कैटेलिस्ट से इलेक्ट्रोलाइज़र विकसित किया, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों के उत्पादन में सक्षम है। इस तकनीक की विशेषता यह है कि इसमें ट्रांजिशन बाइमेटल-आधारित कैटेलिस्ट का प्रयोग किया गया है, जो क्षारीय समुद्री जल को इलेक्ट्रोलाइट के रूप में उपयोग करने पर हाइपोक्लोराइट बनने की बजाय ऑक्सीजन उत्पादन को प्राथमिकता देता है।”
केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत भारत का लक्ष्य 2030 तक वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का केंद्र और अग्रणी देश बनने का है।
लेकिन, एक किलोग्राम ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में लगभग नौ लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस तरह 50 लाख टन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए लगभग 50 अरब लीटर डी-मिनरलाइज्ड या मीठे पानी की जरूरत होगी।
नई तकनीक को एकल सेल से नौ-सेल स्टैक तक सफलतापूर्वक स्केल-अप किया गया है, जिससे व्यावसायिक सौर फोटोवोल्टाइक प्रणाली से ऊर्जा प्राप्त कर प्रति घंटे 50 लीटर तक ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन संभव हो सका।
प्रोफेसर रामप्रभु ने कहा: “देश स्वदेशी ग्रीन हाइड्रोजन से प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन की खपत घटाकर बड़ा लाभ प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा, हाइड्रोजन-चालित वाहनों में एच2 फ्यूल सेल के उपयोग से स्वच्छ ऊर्जा रूपांतरण संभव होगा। ग्रीन हाइड्रोजन को इस्पात उद्योग, रासायनिक उद्योग (अमोनिया व उर्वरक निर्माण) में भी उपयोग किया जा सकेगा। ग्रीन अमोनिया उत्पादन में जीएच2 का इस्तेमाल जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और कार्बन उत्सर्जन को काफी हद तक कम करेगा।”
With inputs from IANS