
नई दिल्ली- भारत की समृद्ध भाषाई विविधता के संरक्षण और समावेशी जनजातीय सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय शनिवार को “आदि वाणी” का बीटा संस्करण लॉन्च करने जा रहा है। यह भारत का पहला एआई-आधारित अनुवादक है जो विशेष रूप से जनजातीय भाषाओं के लिए बनाया गया है।
“जनजातीय गौरव वर्ष” के तहत विकसित यह अनूठी पहल देश के आदिवासी क्षेत्रों की भाषाई और शैक्षिक परिदृश्य को बदलने वाली साबित होगी, मंत्रालय ने अपने बयान में कहा।
गूगल प्ले स्टोर (और जल्द ही iOS) तथा समर्पित वेब प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध आदि वाणी जनजातीय और गैर-जनजातीय समुदायों के बीच संचार की खाई को पाटने के साथ-साथ संकटग्रस्त भाषाओं को सुरक्षित रखने का कार्य करेगी।
मंत्रालय ने कहा कि आदि वाणी एआई-आधारित अनुवाद उपकरण है, जो भविष्य में जनजातीय भाषाओं के लिए बड़े भाषा मॉडल (LLM) की नींव रखेगा। यह परियोजना उन्नत एआई तकनीकों और सामुदायिक सहभागिता को मिलाकर जनजातीय भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण, प्रोत्साहन और पुनर्जीवन का लक्ष्य रखती है।
भारत में अनुसूचित जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली 461 भाषाएँ और 71 विशिष्ट मातृभाषाएँ (जनगणना 2011) हैं। इनमें से 81 भाषाएँ असुरक्षित और 42 भाषाएँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। सीमित दस्तावेज़ीकरण और पीढ़ियों के बीच भाषा-स्थानांतरण की कमी के कारण कई भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
मंत्रालय ने कहा कि आदि वाणी इस चुनौती का समाधान एआई के ज़रिए व्यवस्थित डिजिटलीकरण, संरक्षण और पुनर्जीवन के माध्यम से करेगी।
इस परियोजना को राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के एक संघ द्वारा विकसित किया जा रहा है, जिसमें आईआईटी दिल्ली प्रमुख है और इसके साथ बीआईटीएस पिलानी, आईआईआईटी हैदराबाद, आईआईआईटी नया रायपुर तथा झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मेघालय के जनजातीय शोध संस्थान (TRIs) सहयोग कर रहे हैं। इसका उद्देश्य हिंदी/अंग्रेज़ी और जनजातीय भाषाओं के बीच वास्तविक समय (टेक्स्ट व वॉइस) अनुवाद सक्षम करना और विद्यार्थियों व शुरुआती सीखने वालों के लिए इंटरैक्टिव भाषा अधिगम उपलब्ध कराना है।
इसके अतिरिक्त यह पहल लोककथाओं, मौखिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को डिजिटल रूप से संरक्षित करेगी, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य संवाद, नागरिक भागीदारी और सरकारी योजनाओं व महत्वपूर्ण भाषणों की जानकारी को भी सुलभ बनाएगी।
बीटा संस्करण में आदि वाणी संथाली (ओडिशा), भीली (मध्य प्रदेश), मुंडारी (झारखंड), गोंडी (छत्तीसगढ़) भाषाओं का समर्थन करेगी। अगले चरण में कुई और गारो जैसी भाषाएँ भी जोड़ी जाएंगी।
मंत्रालय ने कहा कि यह पहल भारत के संवैधानिक मूल्यों — सांस्कृतिक विविधता और समानता — को सशक्त करने के साथ-साथ डिजिटल इंडिया, एक भारत श्रेष्ठ भारत, आदि कर्मयोगी अभियान, धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान और पीएम जनमन जैसी राष्ट्रीय योजनाओं को भी गति प्रदान करेगी।
With inputs from IANS