आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए भारत ने शुरू की ‘क्रिटिकल मिनरल्स’ यात्राBy Admin Mon, 08 September 2025 08:52 AM

नई दिल्ली – केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) के तहत 1,500 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य ई-वेस्ट, लिथियम-आयन बैटरी स्क्रैप और जीवन-चक्र पूरा कर चुके वाहनों के पुर्जों जैसी द्वितीयक स्रोतों से क्रिटिकल मिनरल्स की रीसाइक्लिंग क्षमता को बढ़ाना है।

सरकार के अनुसार, इस पहल से 270 किलो टन वार्षिक रीसाइक्लिंग क्षमता विकसित होगी, 40 किलो टन क्रिटिकल मिनरल्स का उत्पादन होगा, करीब 8,000 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित होगा और लगभग 70,000 रोजगार सृजित होंगे। यह आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती और आयात निर्भरता कम करने की दिशा में एक अहम कदम है।

क्रिटिकल मिनरल्स आज के दौर का “21वीं सदी का तेल” माने जा रहे हैं — दुर्लभ, रणनीतिक और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी। ये आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

भारत ने 2030 तक अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 45% कमी, आधी ऊर्जा क्षमता गैर-जीवाश्म स्रोतों से हासिल करने और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लिथियम, कोबाल्ट, निकल और रेयर अर्थ्स की दीर्घकालिक आपूर्ति सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।

जनवरी 2025 में भारत ने सात साल की अवधि (2024–25 से 2030–31) के लिए राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन शुरू किया, जिसकी कुल लागत 16,300 करोड़ रुपये प्रस्तावित है, जबकि सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य भागीदारों से 18,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है।

यह केवल खनन कार्यक्रम नहीं, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और तकनीकी आत्मनिर्भरता का रणनीतिक खाका है। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लिथियम से लेकर रक्षा प्रणालियों के लिए आवश्यक रेयर अर्थ्स तक, मिशन का दायरा बेहद व्यापक है।

मिशन का एक प्रमुख लक्ष्य 2030–31 तक क्रिटिकल मिनरल्स वैल्यू चेन में 1,000 पेटेंट दाखिल कराने और घरेलू तकनीकों को व्यावसायिक रूप देने की दिशा में नवाचार को बढ़ावा देना है।

सरकार के मुताबिक, इसी कड़ी में 6 अप्रैल 2025 को मिशन के तहत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CoE) स्थापित करने के दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं, जो भारत की क्रिटिकल मिनरल्स रणनीति को आगे बढ़ाने में एक अहम पड़ाव है।

 

With inputs from IANS