
नई दिल्ली- भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने सिलाई मशीन के फुट पैडल को सहायक तकनीक के जरिए नया रूप दिया है, जिससे पूरी मशीन अब हाथों से नियंत्रित की जा सकती है।
सोऩा कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी (तमिलनाडु) के अनुसार, शुरुआती प्रोटोटाइप का परीक्षण ग्रामीण इलाक़ों की उन महिलाओं ने किया, जिनकी निचले अंगों की गतिशीलता सीमित थी। यह पहल तेजी से चर्चा में आ गई।
विचार तब आया जब शोधकर्ताओं ने देखा कि कई महिलाएं, जिनके पैरों की गति सीमित है, औद्योगिक सिलाई मशीनें चला नहीं पातीं। इस चुनौती को चार सदस्यीय टीम — डी. राजा, के. मणि, जी. गुणसेकरन और एस.एस. सुरेश — ने स्वीकार किया और तीन पेटेंट अपने नाम किए।
सबसे हालिया सफलता हैप्टिक ग्लव वेरिएंट (2025) है। यह पहनने योग्य दस्ताना हथेली के दबाव सेंसर के ज़रिए वायरलेस तरीके से मशीन के मोटर को सक्रिय करता है। यह न सिर्फ़ आरामदायक है, बल्कि समावेशी डिज़ाइन का प्रतीक भी है।
ऑप्टिकल सेंसर वेरिएंट, जिसे 2024 में पेटेंट मिला, हाथों के इशारों को पहचानकर मशीन को नियंत्रित करता है। यह हल्के स्पर्श से संचालित, सुरक्षित और अनुकूलनीय है।
इस श्रृंखला का पहला नवाचार था लोड-सेल एल-प्लेट वेरिएंट, जिसे 2022 में पेटेंट मिला। इसमें पारंपरिक फुट पैडल की जगह हाथ-प्रेस सिस्टम दिया गया।
इन आविष्कारों की बदौलत पहली बार दिव्यांग महिलाएं स्वतंत्र रूप से सिलाई कर सकीं और वस्त्र निर्माण इकाइयों में सभी औद्योगिक प्रक्रियाएं आसानी से पूरी कर सकीं। इससे उन्हें घर के पास ही स्थिर आय का साधन भी मिला।
पिछले नौ वर्षों में 300 से अधिक दिव्यांग महिलाओं को इन पेटेंटेड मशीनों पर प्रशिक्षित किया गया है। कई महिलाओं के लिए यह केवल रोजगार का साधन ही नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और गरिमा वापस पाने का अवसर भी बना।
सोना कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी के वाइस चेयरमैन चोको वल्लियप्पा ने कहा, “ये पेटेंट केवल तकनीक नहीं हैं। ये बाधाओं को तोड़ने, अवसर बनाने और यह दिखाने के बारे में हैं कि समावेशन को रोज़मर्रा के औज़ारों में डिज़ाइन किया जा सकता है।”
तमिलनाडु सरकार ने इन पेटेंटेड सिलाई मशीनों की 11 यूनिट्स दिव्यांग महिलाओं की आजीविका सहायता के लिए सोना कॉलेज द्वारा संचालित सामुदायिक केंद्र, मरमंगलथुपट्टी (जिला सलेम) में उपलब्ध कराई हैं। इसके अलावा, केंद्र में 300 और महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है।
With inputs from IANS