फंगल रोगजनकों से निपटने के लिए आईसीएमआर शोधकर्ताओं ने विकसित की नई तकनीकBy Admin Thu, 18 September 2025 06:00 AM

नई दिल्ली- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने खतरनाक फंगल रोगजनक कैंडिडा एल्बिकंस (CAL) से निपटने के लिए एक अनोखा तरीका विकसित किया है।

कैंडिडा एल्बिकंस ही सिस्टमिक कैंडिडायसिस का मुख्य कारण है, जो गंभीर मामलों में 63.6 प्रतिशत तक की उच्च मृत्यु दर के साथ एक बड़ी वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती है।

वाधवानी स्कूल ऑफ डेटा साइंस एंड एआई (WSAI) और आईआईटी मद्रास के विशेषज्ञों के साथ मिलकर आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने एक बहुविषयक पद्धति तैयार की है, जिसके जरिए रोगजनक की आक्रामकता (वायरुलेंस) को नियंत्रित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण मेटाबॉलिक मार्गों की पहचान की गई।

शोध दल ने बड़े पैमाने पर कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग और प्रयोगात्मक परीक्षणों को मिलाकर CAL में अज्ञात महत्वपूर्ण मेटाबॉलिक कमजोरियों की पहचान की।

“अन्य अध्ययनों से अलग, इस एकीकृत होस्ट-फंगल मेटाबॉलिक मॉडल ने CAL मॉडल iRV781 को मानव मेटाबॉलिक मॉडल Recon3D के साथ जोड़ा,” मुंबई स्थित आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. सुसान थॉमस ने कहा।

इससे शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद मिली कि संक्रमण के दौरान CAL का मेटाबॉलिज्म किस तरह प्रतिक्रिया करता है, प्रयोगशाला में दिखाई न देने वाली छिपी हुई मेटाबॉलिक कमजोरियों को उजागर किया जा सका और CAL की रोगजनक क्षमता में आर्जिनिन मेटाबॉलिज्म की अहम भूमिका सामने आई।

आईआईटी मद्रास के डॉ. कार्तिक रामन ने कहा, “यह क्रांतिकारी शोध एंटी-फंगल दवाओं को और विविध व प्रभावी बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि दवा प्रतिरोध को दरकिनार किया जा सके। इसका उद्देश्य मरीजों की जान बचाना, मृत्यु दर घटाना और इलाज की लागत कम करना है।”

यह अध्ययन प्रतिष्ठित Cell Communication and Signaling नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जो भारत की अंतर्विषयक शोध क्षमता और वैश्विक समाधान में योगदान की संभावनाओं को रेखांकित करता है।

कैंडिडा एल्बिकंस एक प्रकार का यीस्ट है, जो सामान्यतः मानव शरीर में प्राकृतिक माइक्रोबायोटा का हिस्सा होता है और सामान्य स्थिति में हानिरहित रहता है। यह मुंह, गले, आंत, योनि और त्वचा पर पाया जाता है।

लेकिन जब यह पूरे शरीर में फैलता है, तो सिस्टमिक कैंडिडायसिस नामक गंभीर संक्रमण का कारण बनता है, जो रक्त प्रवाह और आंतरिक अंगों तक पहुंचकर जानलेवा हो सकता है।

भारत में हर साल लगभग 4.7 लाख लोग आक्रामक कैंडिडायसिस से प्रभावित होते हैं, यानी प्रति 1 लाख जनसंख्या पर लगभग 34 लोग। विश्व स्तर पर हर साल करीब 15.65 लाख लोग इससे संक्रमित होते हैं, जिनमें से 9.95 लाख (63.6 प्रतिशत) की मौत हो जाती है।

 

With inputs from IANS