
नई दिल्ली- दूषित पानी के संपर्क में आना मस्तिष्क खाने वाले अमीबा संक्रमण का मुख्य कारण है, जिससे केरल में अब तक 19 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें तीन साल तक के छोटे बच्चे भी शामिल हैं। डॉक्टरों ने लोगों से झीलों और अन्य जलाशयों में तैराकी से बचने की अपील की है।
अमीबिक मेनिन्जाइटिस एक दुर्लभ लेकिन घातक संक्रमण है, जो Naegleria fowleri नामक मुक्त-जीवित अमीबा (ब्रेन-ईटिंग अमीबा) से होता है। यह ताजे पानी, झीलों और नदियों में पाया जाता है।
केरल में अब तक इस संक्रमण के 61 मामले सामने आ चुके हैं और 19 मौतें हुई हैं। इनमें 3 महीने के शिशु से लेकर 91 वर्ष तक के मरीज शामिल हैं।
कोझिकोड गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में केरल वन हेल्थ सेंटर फॉर निपाह रिसर्च एंड रेजिलिएंस के प्रोफेसर और नोडल अधिकारी डॉ. टी.एस. अनीश ने कहा,
“अमीबायोसिस या अमीबिक मेनिन्जाइटिस बहुत दुर्लभ बीमारी है, जिसे पहचानना बेहद कठिन है। यह Acute Encephalitis Syndrome (AES) का हिस्सा है। दुनिया भर में इसके लिए कोई विशेष डायग्नोस्टिक तकनीक उपलब्ध नहीं है।”
उन्होंने बताया कि निपाह प्रकोप के बाद एक विशेष प्रणाली विकसित की गई, जिससे ज्यादा से ज्यादा AES मामलों का पता लगाया जा सके। इसी कारण अमीबिक मेनिन्जाइटिस के मामलों की संख्या बढ़ी है।
डॉ. अनीश ने इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने कहा, “जब जलाशयों का तापमान बढ़ेगा तो थर्मोफिलिक जीव निश्चित रूप से बढ़ेंगे। साथ ही हमारे जल स्रोतों में प्रदूषण भी समस्या है।”
उन्होंने यह भी बताया कि “दुनिया भर की तुलना में केरल में इस बीमारी से मृत्यु दर सबसे कम है।”
वैश्विक स्तर पर Naegleria fowleri से होने वाले अमीबिक मेनिन्जाइटिस की मृत्यु दर 97-98% है, जबकि सामान्य मामलों में यह 60-70% तक रहती है। लेकिन केरल में यह लगभग 20% है, संभवतः शुरुआती पहचान के कारण।
दिल्ली स्थित एक प्रमुख अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अंशु रोहतगी ने इस संक्रमण को “तेजी से शहरीकरण, बिना क्लोरीन वाले या बिना डिसइंफेक्ट किए गए पानी में तैराकी” से जोड़ा।
उन्होंने कहा, “यह अमीबा नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है और फिर मस्तिष्क तक पहुँचकर अमीबिक मेनिन्जोएन्सेफलाइटिस पैदा करता है।”
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय रहते पहचान हो जाए तो यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है।
डॉ. रोहतगी ने कहा, “अगर इसका इलाज न हो तो 100% मौत तय है। लेकिन केरल में शुरुआती जांच के चलते कई मरीजों की जान बचाई जा रही है।”
उन्होंने संक्रमण पहचानने के लिए लम्बर पंचर या CSF (Cerebrospinal Fluid) जांच को सबसे जरूरी बताया।
डॉ. अनीश ने कहा कि “यह बीमारी उतनी दुर्लभ नहीं है, लेकिन भारत के ज्यादातर हिस्सों में इसे पहचानना मुश्किल है।”
उन्होंने 2014 से 2022 के बीच पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ में हुए एक अध्ययन का जिक्र किया, जिसमें 156 संदिग्ध मेनिन्जोएन्सेफलाइटिस मरीजों की जांच हुई। इनमें से 11 मरीजों में PCR टेस्ट द्वारा फ्री-लिविंग अमीबा (FLA) की पुष्टि हुई।
उन्होंने बताया कि जिन लोगों में CSF rhinorrhoea (मस्तिष्क के आसपास का तरल नाक से रिसना) का इतिहास है, या जिनकी मस्तिष्क/खोपड़ी से जुड़ी सर्जरी हुई है, उनमें इस रोग का खतरा ज्यादा रहता है।
विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया कि यह संक्रमण व्यक्ति-से-व्यक्ति नहीं फैलता और न ही दूषित पानी निगलने से होता है।
उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि तालाबों या प्रदूषित नदियों में तैराकी न करें और न ही बिना उबाले पानी से नाक की सफाई करें।
With inputs from IANS