
सिडनी- ऑस्ट्रेलिया की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने प्रागैतिहासिक जीवों के मल (फॉसिलाइज्ड फेसेस) का उपयोग कर यह समझने की कोशिश की कि आणविक जीवाश्मीकरण (molecular fossilization) कैसे होता है। इस शोध ने यह उजागर किया कि प्राचीन जीव क्या खाते थे, किस दुनिया में रहते थे और उनके मरने के बाद क्या हुआ। यह अध्ययन जियोबायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
अमेरिका के मेज़न क्रीक फॉसिल साइट से मिले 30 करोड़ साल पुराने जीवाश्म बने मल (जिन्हें ‘कॉप्रोलाइट्स’ कहा जाता है) का अध्ययन किया गया। पहले से ज्ञात था कि इनमें कोलेस्ट्रॉल के डेरिवेटिव मौजूद हैं, जो मांसाहारी आहार का प्रमाण है। मगर नए शोध में वैज्ञानिकों ने यह समझने की कोशिश की कि इतने नाज़ुक आणविक निशान समय की मार से कैसे सुरक्षित रह पाए।
आमतौर पर जीवों के मुलायम ऊतक (soft tissues) फॉस्फेट मिनरल्स की वजह से संरक्षित होते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, स्वीडन और जर्मनी के वैज्ञानिकों ने पाया कि इन कॉप्रोलाइट्स में अणु वास्तव में आयरन कार्बोनेट के सूक्ष्म कणों की वजह से सुरक्षित रहे, जिन्होंने इन्हें ‘सूक्ष्म टाइम कैप्सूल’ की तरह संरक्षित किया।
अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता मैडिसन ट्रिप (Curtin University) ने कहा, “जीवाश्म सिर्फ विलुप्त जीवों की आकृति ही नहीं बचाते, बल्कि जीवन के रासायनिक निशान भी सहेज सकते हैं। यह लंबे समय से रहस्य था कि इतने नाज़ुक अणु करोड़ों सालों तक कैसे टिके रहते हैं। हमने पाया कि असली संरक्षण फॉस्फेट नहीं बल्कि आयरन कार्बोनेट ने किया।”
कर्टिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्लिटी ग्राइस ने कहा, “कार्बोनेट मिनरल्स ने पृथ्वी के इतिहास में लगातार जैविक सूचनाओं को संरक्षित किया है। जब हमने अलग-अलग प्रजातियों, पर्यावरणों और युगों के जीवाश्मों का अध्ययन किया, तो पाया कि यह पैटर्न हर जगह दोहराया जा रहा है।”
उन्होंने आगे कहा, “यह कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक सुसंगत पैटर्न है। अब हमें यह समझ में आ गया है कि कौन-से खनिज प्राचीन जैव-अणुओं को सुरक्षित रखने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं। इसका मतलब है कि हम जीवाश्म खोजों में ज़्यादा सटीक और लक्षित हो सकते हैं।”
प्रोफेसर ग्राइस ने कहा कि यह खोज वैज्ञानिकों को अतीत के पारिस्थितिक तंत्रों को समझने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण दे रही है।
उन्होंने कहा, “अब हम सिर्फ यह नहीं जान पाते कि जीव कैसे दिखते थे, बल्कि यह भी समझ सकते हैं कि वे कैसे रहते थे, एक-दूसरे से कैसे जुड़ते थे और मृत्यु के बाद उनका विघटन कैसे होता था। यह प्रागैतिहासिक दुनिया को आणविक विवरण में जीवंत बना देता है।”
With inputs from IANS