भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया बन रहे हैं चिप उद्योग के नए केंद्रBy Admin Fri, 26 September 2025 05:45 AM

नई दिल्ली- भू-राजनीतिक अस्थिरता और आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने की आवश्यकता ने भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया को वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में अग्रणी बना दिया है।

ताइवान और चीन पर अत्यधिक निर्भरता, जो हालिया व्यवधानों और प्रतिबंधों से उजागर हुई, ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मलेशिया, वियतनाम और भारत जैसे देशों की ओर आकर्षित किया है। यहां किफायती लागत, नीतिगत प्रोत्साहन और प्रशिक्षित कार्यबल कंपनियों को नए ठिकाने बनाने में मदद कर रहे हैं।

एशिया के सेमीकंडक्टर बाजार का राजस्व वर्ष 2025 में 466.52 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो विश्व स्तर पर सबसे बड़ा क्षेत्रीय हिस्सा होगा। ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे स्थापित केंद्र अब भी अग्रणी हैं, लेकिन भारत, जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया तेज़ी से अंतर पाट रहे हैं। यह नीतिगत बदलाव, विदेशी निवेश और तकनीकी अपनाने की रफ्तार से संभव हो रहा है, जैसा कि वन वर्ल्ड आउटलुक में जेनिफर शियाओ ने बताया।

भारत के सेमीकंडक्टर सपने अब हकीकत बनने की ओर बढ़ रहे हैं। 2025 के अंत तक वाणिज्यिक चिप निर्माण शुरू होने की उम्मीद है। इस दिशा में 10 परियोजनाओं में लगभग 18 अरब डॉलर का निवेश हुआ है। सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम और हाल ही में स्वीकृत इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम जैसी नीतियां आत्मनिर्भरता और वैश्विक एकीकरण को बल दे रही हैं। इन प्रयासों से भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 2023 में 38 अरब डॉलर से बढ़कर 2025 तक 50 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। लक्ष्य 2030 तक 100-110 अरब डॉलर तक पहुंचने का है।

दूसरी ओर, दक्षिण-पूर्व एशिया असेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग (ATP) जैसे बैक-एंड कार्यों का हब बन रहा है, जो चिप उद्योग की नींव हैं। मलेशिया का पेनांग राज्य एआई चिप असेंबली का केंद्र बन गया है, जबकि वियतनाम और थाईलैंड भी क्षेत्र की निर्यात क्षमता को मज़बूत कर रहे हैं। इससे दक्षिण-पूर्व एशिया वैश्विक चिप आपूर्ति में एक अहम स्तंभ बन गया है।

लेख में कहा गया है कि एशिया इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बढ़ती मांग के बीच वैश्विक सेमीकंडक्टर उत्पादन का केंद्र बनने की स्थिति में है। यहां न केवल बड़े पैमाने पर उत्पादन की क्षमता है, बल्कि परिपक्व इकोसिस्टम, रिसर्च संस्थान, सप्लायर नेटवर्क और वैश्विक ग्राहक एक साथ मौजूद हैं। टीएसएमसी, सैमसंग, इंटेल और इन्फिनियन जैसी कंपनियों का निवेश इसे और मज़बूत कर रहा है।

हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कुशल कार्यबल की कमी, बढ़ती मजदूरी, अधूरी अवसंरचना और व्यापारिक प्रतिबंध जैसी बाधाएं इस विकास को प्रभावित कर सकती हैं। लेख के अनुसार, इन bottlenecks से निपटने के लिए शिक्षा, अनुसंधान एवं विकास और सप्लाई चेन सुरक्षा में निरंतर निवेश ज़रूरी है। एशिया की सफलता सिर्फ़ बड़े ऐलानों पर नहीं, बल्कि उनके सही क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी।

 

With inputs from IANS