
नई दिल्ली — भारतीयों की बदलती खान-पान की आदतें, जिनमें कार्बोहाइड्रेट और संतृप्त वसा की अधिकता और प्रोटीन की कमी है, देश में डायबिटीज और मोटापे की तेज़ी से बढ़ती समस्या की प्रमुख वजह हैं। यह खुलासा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के INDIAB अध्ययन में हुआ है। यह रिपोर्ट नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित की गई।
अध्ययन में पाया गया कि भारतीय अपनी कुल ऊर्जा का औसतन 62 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त करते हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है। इसमें मुख्य स्रोत सफेद चावल, पिसे हुए अनाज और अतिरिक्त चीनी हैं, जिन्हें डायबिटीज, प्रीडायबिटीज और मोटापे के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है।
दक्षिण, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत में चावल मुख्य भोजन है, जबकि उत्तर और मध्य भारत में गेहूं अधिक खाया जाता है। चीनी का सेवन भी चिंताजनक स्तर पर है — 21 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश राष्ट्रीय सिफारिश (ऊर्जा का 5 प्रतिशत से कम) से कहीं अधिक चीनी का सेवन करते पाए गए।
कुल वसा का सेवन राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के भीतर रहा, लेकिन संतृप्त वसा का स्तर लगभग सभी राज्यों में तय सीमा (7 प्रतिशत ऊर्जा से कम) से अधिक था। वहीं, मोनोअनसैचुरेटेड और ओमेगा-3 पॉलीअनसैचुरेटेड वसा का सेवन बेहद कम पाया गया।
प्रोटीन की खपत भी अपर्याप्त रही — औसतन केवल 12 प्रतिशत ऊर्जा ही प्रोटीन से मिलती है। अधिकतर प्रोटीन अनाज, दालों और दलहन से आता है, जबकि डेयरी और मांस का योगदान बेहद कम है।
एमडीआरएफ की अध्यक्ष और अध्ययन की प्रमुख लेखिका डॉ. आर.एम. अंजना ने कहा, “भारतीय आहार कार्बोहाइड्रेट पर अत्यधिक निर्भर है और गुणवत्तापूर्ण प्रोटीन की कमी है, जिससे करोड़ों लोग जोखिम में हैं। केवल चावल की जगह बाजरा या गेहूं खाना पर्याप्त नहीं होगा, जब तक कुल कार्ब सेवन घटे और प्रोटीन का अनुपात न बढ़े।”
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और एमडीआरएफ के चेयरमैन डॉ. वी. मोहन ने कहा, “ये निष्कर्ष नीतिगत सुधार की मांग करते हैं। खाद्य सब्सिडी और जनस्वास्थ्य संदेशों को इस दिशा में केंद्रित करना होगा ताकि लोग कार्ब और संतृप्त वसा की जगह पौधों और डेयरी प्रोटीन से भरपूर आहार अपनाएं।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी आहार संबंधी बदलाव भारत के पोषण परिदृश्य को सुधार सकते हैं और डायबिटीज व मोटापे जैसी बीमारियों की रफ्तार को थाम सकते हैं।
With inputs from IANS