पश्चिमी तट के सिंधी पाकिस्तानी सिंधियों से आनुवंशिक रूप से अलग: अध्ययनBy Admin Sat, 04 October 2025 05:52 AM

हैदराबाद। भारत के पश्चिमी तट पर रहने वाले सिंधी समुदाय का आनुवंशिक स्वरूप पाकिस्तानी सिंधियों से अलग है। यह खुलासा हैदराबाद स्थित सीएसआईआर-सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी सेंटर (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है।

सीएसआईआर-सीसीएमबी के भटनागर फेलो डॉ. कुमारसामी थंगराज और उनके सहयोगी डॉ. लोमस कुमार ने यह शोध किया। अध्ययन के अनुसार, पश्चिमी तट के सिंधी समुदाय में पाकिस्तान के बुरुशो और हजारा जैसे समूहों से आनुवंशिक समानताएं पाई गई हैं, साथ ही स्थानीय आबादी जैसे कोंकणी समुदाय से हाल की आनुवंशिक मिलावट भी देखने को मिली है।

डॉ. थंगराज के मुताबिक, भारतीय सिंधियों में एक विशिष्ट पूर्वी एशियाई आनुवंशिक तत्व मौजूद है, जो पाकिस्तानी सिंधियों से उन्हें अलग करता है। यह अंतर संभवतः प्राचीन मंगोल आक्रमणों या फिर बुरुशो और हजारा जैसे समूहों के माध्यम से हुआ होगा।

डॉ. लोमस कुमार, जो डीएसटी-बीएसआईपी, लखनऊ में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता हैं, ने कहा,
“हमारे अध्ययन से पता चला कि भारतीय सिंधियों में पूर्वी एशिया का एक छोटा लेकिन अनोखा आनुवंशिक अंश शामिल है। यह शायद लौह युग या उसके बाद मंगोल आक्रमणों के दौरान उनकी आबादी में समाहित हुआ।”

सीएसआईआर-सीसीएमबी के निदेशक डॉ. विनय के. नंदिकूरी ने कहा,
“ये निष्कर्ष पश्चिमी भारत में हुई जनसांख्यिकीय बदलावों और प्रवासन को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। इनमें से कुछ प्रवासन लौह युग और मध्ययुग में हुए, जबकि कुछ स्वतंत्रता के बाद भी हुए।”

भारत का पश्चिमी तट, जो अरब सागर और पश्चिमी घाटों के बीच स्थित है, विभिन्न मानव समूहों का घर रहा है। यहां पुर्तगाली, मध्य-पूर्वी समुदाय, यहूदी, पारसी और ईसाई मिशनरियों जैसी अनेक आबादियों का आगमन हुआ। हालांकि पारसियों, यहूदियों और कैथोलिकों पर पहले कई अध्ययन हुए हैं, लेकिन पश्चिमी तट के सिंधियों पर अब तक बहुत कम शोध हुआ है।

सिंधी समुदाय लंबे समय से सिंध (पाकिस्तान) से भारत के पश्चिमी तट पर आता रहा है, लेकिन सबसे बड़ा प्रवासन भारत विभाजन (1947) के समय हुआ।

यह सीसीएमबी का पहला हाई-थ्रूपुट जेनेटिक अध्ययन है, जिसमें महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर रहने वाले सिंधी समुदाय पर शोध किया गया। वैज्ञानिकों ने 6 लाख डीएनए मार्करों की मदद से उनके आनुवंशिक डेटा को तैयार किया और उन्नत विश्लेषणात्मक एवं सांख्यिकीय तकनीकों से उसका अध्ययन किया।

इस शोध के परिणाम 30 सितंबर, 2025 को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ह्यूमन जीनोमिक्स में प्रकाशित किए गए।

 

With inputs from IANS