
नई दिल्ली – वर्ष 2025 का नोबेल पुरस्कार रसायन विज्ञान (Chemistry) के क्षेत्र में तीन वैज्ञानिकों — सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन और ओमर एम. याघी — को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया है। इन्हें यह सम्मान ऐसे आणविक ढांचे (molecular constructions) विकसित करने के लिए दिया गया है जिनमें बड़ी खाली जगहें होती हैं, जिनसे होकर गैसें और अन्य रासायनिक तत्व प्रवाहित हो सकते हैं।
इन संरचनाओं को मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (Metal-Organic Frameworks – MOFs) कहा जाता है। इनका उपयोग रेगिस्तानी हवा से पानी निकालने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने, विषैली गैसों के भंडारण और रासायनिक अभिक्रियाओं के उत्प्रेरण (catalysis) जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में किया जाता है।
सुसुमु कितागावा जापान के क्योटो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, रिचर्ड रॉबसन ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, जबकि ओमर याघी अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में अध्यापन कर रहे हैं।
नोबेल पुरस्कार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कितागावा ने कहा, “यह सम्मान प्राप्त कर मैं अत्यंत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। मेरा सपना है कि हवा से विभिन्न तत्वों — जैसे CO₂, ऑक्सीजन या पानी — को अलग कर, नवीकरणीय ऊर्जा की मदद से उपयोगी पदार्थों में बदला जा सके।”
उन्होंने अपने छात्रों से कहा, “रसायन विज्ञान और विज्ञान में चुनौतियों को स्वीकार करना ही सबसे ज़रूरी है।”
ओमर याघी, जो जॉर्डन-अमेरिकी वैज्ञानिक हैं, का जन्म जॉर्डन में फिलिस्तीनी शरणार्थी परिवार में हुआ था। उनका बचपन एक कमरे के घर में बीता, जहाँ उनका परिवार पशुओं के साथ रहता था।
उन्होंने कहा, “यह एक लंबी यात्रा रही है, और विज्ञान ने मुझे यह सफर तय करने की शक्ति दी। मेरे माता-पिता मुश्किल से पढ़-लिख सकते थे, पर विज्ञान ने मुझे दुनिया की सबसे बड़ी समानता का एहसास कराया — विज्ञान सबसे महान समानकारी शक्ति है।”
60 वर्षीय याघी ने कहा कि उन्हें इस सम्मान की उम्मीद नहीं थी और यह खबर सुनकर वे “हैरान और बेहद खुश” हैं।
उन्होंने बताया कि जब वे 10 साल के थे, तब उन्होंने पुस्तकालय में अणुओं पर एक किताब पढ़ी थी — वहीं से रसायन विज्ञान के प्रति उनका प्रेम शुरू हुआ।
उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा अणुओं की खूबसूरती के आधार पर ही अनुसंधान के विषय चुने हैं। मेरा उद्देश्य हमेशा कुछ सुंदर बनाना और बौद्धिक समस्याओं का समाधान करना रहा है। जितना गहराई में जाओ, उतनी अधिक सुंदरता दिखती है।”
रिचर्ड रॉबसन का शोध कार्य 1989 में शुरू हुआ था। ब्रिटेन में जन्मे रॉबसन बाद में अपने करियर के शुरुआती वर्षों में ऑस्ट्रेलिया चले गए।
88 वर्षीय वैज्ञानिक हीरे की संरचना से प्रेरित होकर तांबे के आयन और चार-भुजाओं वाले अणु को मिलाकर पिरामिड आकार की संरचनाएँ बनाने में सफल हुए, जो आपस में जुड़कर छिद्रयुक्त क्रिस्टल का निर्माण करती थीं।
हालाँकि शुरुआती संरचनाएँ अस्थिर थीं और टूट जाती थीं, लेकिन बाद में कितागावा और याघी के अनुसंधान ने इन्हें मजबूत और व्यावहारिक रूप से उपयोगी बना दिया।
नोबेल समिति के अध्यक्ष हैनर लिंके ने कहा, “मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स में अत्यधिक संभावनाएँ हैं। ये नई कार्यक्षमताओं के साथ कस्टम-निर्मित पदार्थों के लिए पहले कभी न देखे गए अवसर खोलते हैं।”
इन वैज्ञानिकों की खोजों के बाद रसायनज्ञों ने दसियों हज़ार विभिन्न MOFs बनाए हैं। इनका उपयोग पानी से PFAS रसायनों को अलग करने, पर्यावरण में दवाओं के अंशों को तोड़ने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने, और रेगिस्तानी हवा से पानी प्राप्त करने जैसे कार्यों में किया जा रहा है — जो मानवता की कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान दे सकते हैं।
With inputs from IANS