चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (IBS) के इलाज में सहायक हो सकती हैं व्यवहारगत थेरेपीBy Admin Fri, 10 October 2025 05:48 AM

नई दिल्ली। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, व्यवहारगत थेरेपी (Behavioural therapies) चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome - IBS) के इलाज में प्रभावी साबित हो सकती हैं। यह एक आंतों से जुड़ा विकार है, जिसमें पेट दर्द और मलत्याग की आदतों में बदलाव जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

दुनियाभर में लगभग 5 प्रतिशत लोग IBS से प्रभावित हैं। फिलहाल इसका कोई स्थायी इलाज उपलब्ध नहीं है। आहार में बदलाव और दवाइयाँ केवल आंशिक राहत देती हैं, इसी कारण चिकित्सकीय दिशानिर्देशों में व्यवहारगत थेरेपी को भी विकल्प के तौर पर सुझाया जाता है।

द लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि ब्रेन-गट व्यवहारगत थेरेपी जैसे कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) और गट-डायरेक्टेड हिप्नोथेरेपी (GDH) IBS के प्रबंधन में कारगर हो सकती हैं।

लीड्स विश्वविद्यालय (यूके) के प्रो. एलेक्ज़ेंडर सी. फोर्ड ने बताया, “यह अध्ययन दर्शाता है कि CBT और GDH जैसी ब्रेन-गट व्यवहारगत थेरेपी, IBS के लक्षणों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।”

CBT मरीजों को सोचने और व्यवहार बदलने की तकनीक सिखाती है, ताकि वे अपने लक्षणों को संभाल और स्वीकार कर सकें।

GDH में मरीज को ट्रांस जैसी अवस्था में ले जाकर सुझाव दिए जाते हैं कि उनके लक्षण बेहतर हो रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने बताया कि ब्रेन-गट से इतर अन्य व्यवहारगत थेरेपी, जैसे कॉन्टिजेंसी मैनेजमेंट (पुरस्कार के माध्यम से वांछित व्यवहार को प्रोत्साहित करना) या स्ट्रेस-रिडक्शन तकनीकें, फिलहाल कम प्रमाणित हैं।

यह वैश्विक अध्ययन कनाडा और अमेरिका के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किया गया और इसमें 67 रैंडमाइज़्ड कंट्रोल्ड ट्रायल्स (RCTs) और 7,441 प्रतिभागी शामिल किए गए। समीक्षा में पाया गया कि CBT और GDH — चाहे आमने-सामने, मोबाइल ऐप या इंटरनेट के जरिए दी जाएं — पारंपरिक उपचारों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी रहीं।

शोधकर्ताओं ने बड़े और कठोर RCTs की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि कौन-सी थेरेपी सबसे अधिक प्रभावी है और किन मरीजों को इनसे सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा।

 

With inputs from IANS