
कोहिमा- नागालैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक बहु-संस्थागत शोध में यह खुलासा हुआ है कि चाय के फूल — जिन्हें आमतौर पर कृषि अपशिष्ट समझकर फेंक दिया जाता है — स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपार संभावनाएं समेटे हुए हैं।
विश्वविद्यालय के एक अधिकारी के अनुसार, अध्ययन से पता चला है कि ये कोमल फूल जैव-सक्रिय यौगिकों से भरपूर होते हैं, जिससे वे प्राकृतिक स्वास्थ्य सप्लीमेंट्स और फंक्शनल बेवरेजेज (स्वास्थ्यवर्धक पेय) के लिए एक संभावित स्रोत बन जाते हैं।
जहाँ अब तक दुनिया भर में चाय की पत्तियों पर ही शोध और उपभोग केंद्रित रहा है, वहीं फूलों की अनदेखी की गई थी। यह अध्ययन असम जैसे विश्व के सबसे बड़े चाय उत्पादक क्षेत्रों में किया गया पहला व्यवस्थित प्रयास है, जिसमें सात प्रीमियम चाय प्रजातियों के फूलों की जैव-रासायनिक समृद्धि का विश्लेषण किया गया।
शोध से संकेत मिलता है कि न्यूट्रास्युटिकल (स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद) कंपनियां चाय के फूलों से ऊर्जा बढ़ाने वाले, तनाव घटाने वाले और त्वचा स्वास्थ्य सुधारने वाले उत्पाद बना सकती हैं।
यह शोध न केवल उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए बल्कि छोटे चाय किसानों के लिए भी आर्थिक अवसर लेकर आता है। फूलों के संग्रहण और प्रसंस्करण से ग्रामीणों के लिए नई आमदनी के रास्ते खुल सकते हैं।
अध्ययन के मुताबिक, यह तरीका पर्यावरणीय स्थिरता को भी बढ़ावा देता है क्योंकि फूलों का उपयोग कृषि अपशिष्ट को कम करता है और सर्कुलर बायो-इकोनॉमी (परिपत्र जैव-अर्थव्यवस्था) को प्रोत्साहित करता है।
वैश्विक स्तर पर पौधों से बने पर्यावरण-हितैषी स्वास्थ्य उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है, ऐसे में भारत के पास चाय के फूलों से बने फंक्शनल फूड्स और सप्लीमेंट्स के क्षेत्र में अग्रणी बनने का मौका है।
यह अग्रणी शोध नागालैंड विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संकाय के डिपार्टमेंट ऑफ सॉयल साइंस के प्रोफेसर तन्मय करक, दिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी एंड बायोइन्फॉरमैटिक्स की डॉ. सागरिका दास, और जोरहाट (असम) स्थित टोकलाई टी रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रसिद्ध चाय जैवरसायन विशेषज्ञ मनोरंजन गोस्वामी के सहयोग से किया गया।
इस शोध में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के आईसीएआर-इंडियन एग्रीकल्चरल स्टैटिस्टिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागालैंड विश्वविद्यालय के हॉर्टिकल्चर व सॉयल एंड वाटर कंज़र्वेशन विभाग और दिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री विभाग जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों का भी योगदान रहा।
नागालैंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जगदीश के. पटनायक ने कहा, “यह अभूतपूर्व शोध हमारे क्षेत्र से उत्पन्न नवाचार की उस क्षमता को दर्शाता है जो वैश्विक स्तर पर बड़ा बदलाव ला सकता है। चाय के फूलों के उपेक्षित फायदों का उपयोग कर हमारे वैज्ञानिक स्वास्थ्य और वेलनेस क्षेत्र में नई दिशा दे रहे हैं, जिससे प्राकृतिक सप्लीमेंट्स और औषधीय उत्पादों में क्रांति आ सकती है।”
उन्होंने आगे कहा कि यह प्रयास स्थानीय समुदायों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के नए द्वार खोलता है और ग्रामीण उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है, जिससे किसान टिकाऊ कृषि पद्धतियों के साथ नई आर्थिक संभावनाएं विकसित कर सकते हैं।
डॉ. सागरिका दास के अनुसार, चाय के फूलों में पॉलीफिनॉल्स, कैटेचिन्स, टरपेनॉइड्स और एल-थीनिन जैसे स्वास्थ्यवर्धक यौगिक अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जबकि इनमें कैफीन की मात्रा चाय की पत्तियों की तुलना में कम होती है। एल-थीनिन और कैफीन का संयोजन मानसिक स्पष्टता, शांति और तनाव कम करने में लाभकारी होता है।
उन्होंने बताया, “चाय के फूलों का पुनः उपयोग न केवल कृषि अपशिष्ट को घटा सकता है, बल्कि ग्रामीण आय बढ़ाकर चाय उद्योग को भी विविधता प्रदान कर सकता है — जैसे न्यूट्रास्युटिकल्स, हर्बल टी और डाइटरी सप्लीमेंट्स के रूप में।”
प्रो. करक ने कहा कि यह अध्ययन दर्शाता है कि चाय के फूल केवल उप-उत्पाद नहीं हैं, बल्कि वे बहुमूल्य न्यूट्रास्युटिकल संसाधन हैं जिनसे हर्बल चाय, इन्फ्यूज्ड ऑयल, डाइटरी सप्लीमेंट्स और वेलनेस उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।
उन्होंने कहा, “एंटीऑक्सीडेंट्स और आवश्यक अमीनो एसिड्स से भरपूर ये फूल तनाव कम करने, मस्तिष्क कार्य सुधारने और डायबिटीज़ व हृदय रोग जैसी बीमारियों की रोकथाम में सहायक साबित हो सकते हैं। आगे चलकर क्लिनिकल परीक्षणों से इनके स्वास्थ्य लाभों की पुष्टि होने पर ये फूल वैश्विक वेलनेस उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।”
“चाय के फूलों से बने उत्पाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाएंगे, किसानों की आय बढ़ाएंगे और भारत को पौध-आधारित स्वास्थ्य उत्पादों के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की स्थिति में स्थापित करेंगे,” उन्होंने कहा।
With inputs from IANS