
नई दिल्ली- जापान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने वसा ऊतक (फैटी टिशू) से प्राप्त स्टेम सेल्स की मदद से पशु मॉडल्स में रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर का सफल उपचार किया है।
ओसाका मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी की टीम ने चूहों पर यह अध्ययन किया, जिनमें ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों के कमजोर होने की बीमारी) के कारण होने वाले रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर जैसे लक्षण उत्पन्न किए गए थे।
शोधकर्ताओं ने शरीर की चर्बी (एडिपोज़ टिशू) से निकाले गए स्टेम सेल्स का उपयोग किया, जो न केवल आसानी से एकत्र किए जा सकते हैं, बल्कि बुजुर्ग व्यक्तियों से भी बिना किसी बड़ी परेशानी के प्राप्त किए जा सकते हैं। इस तरह, यह तरीका शरीर पर न्यूनतम दबाव डालते हुए हड्डियों की बीमारियों के उपचार के लिए एक गैर-आक्रामक (non-invasive) विकल्प प्रदान करता है।
शोध में पाया गया कि जिन चूहों में एडिपोज़ डिराइव्ड स्टेम सेल्स (ADSCs) प्रत्यारोपित किए गए थे, उनमें हड्डियों का पुनर्निर्माण और मजबूती उल्लेखनीय रूप से बढ़ी। साथ ही, हड्डी निर्माण और पुनर्जनन से जुड़े जीन भी सक्रिय हुए। यह अध्ययन Bone and Joint Research जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ताओं में शामिल युता सवादा, जो विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मेडिसिन के छात्र हैं, ने कहा, “इस अध्ययन ने ADSCs से बने बोन डिफरेंशिएशन स्फेरॉइड्स की क्षमता को उजागर किया है, जो रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर के नए उपचार विकसित करने में मदद कर सकते हैं।”
डॉ. शिंजी ताकाहाशी ने कहा, “क्योंकि ये कोशिकाएं वसा से प्राप्त होती हैं, इसलिए शरीर पर बहुत कम बोझ पड़ता है और रोगी की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। यह सरल और प्रभावी तरीका कठिन फ्रैक्चर का भी उपचार कर सकता है और हड्डियों के ठीक होने की प्रक्रिया को तेज कर सकता है।”
ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियां कमजोर और भंगुर हो जाती हैं, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। इनमें रीढ़ की हड्डी के संपीड़न फ्रैक्चर (osteoporotic vertebral fractures) सबसे आम हैं, जो गंभीर समस्या उत्पन्न करते हैं और लंबे समय तक देखभाल तथा जीवन की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बनते हैं।
शोधकर्ताओं ने बहुप्रतिभाशाली (multipotent) स्टेम सेल्स का उपयोग किया, जिन्हें कई प्रकार की कोशिकाओं में परिवर्तित किया जा सकता है। उन्होंने ADSCs को बोन-डिफरेंशिएटेड स्फेरॉइड्स (त्रिआयामी गोलाकार समूह) में विकसित किया और उन्हें बीटा-ट्राइकैल्शियम फॉस्फेट – जो हड्डियों के पुनर्निर्माण में व्यापक रूप से प्रयुक्त सामग्री है – के साथ संयोजित कर चूहों में रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर का सफल उपचार किया।
डॉ. ताकाहाशी ने आगे कहा, “यह तकनीक भविष्य में एक नई चिकित्सा पद्धति बन सकती है, जो मरीजों के स्वस्थ जीवन को लंबा करने में मदद करेगी।”
With inputs from IANS