
नई दिल्ली। एक चिंताजनक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, भारत में 80 प्रतिशत से अधिक मरीज बहुदवा-प्रतिरोधी जीवाणु (एमडीआरओ) लेकर चल रहे हैं — जो दुनिया में सबसे अधिक है। यह निष्कर्ष देश में बढ़ते एंटीबायोटिक प्रतिरोध संकट की गहराई को दर्शाता है।
लैंसेट eClinical Medicine में प्रकाशित इस बड़े अध्ययन ने चेतावनी दी है कि भारत सुपरबग्स के तेज़ी से फैलते केंद्र में बदल चुका है, क्योंकि कई मरीजों में एक साथ कई अत्यधिक प्रतिरोधी जीवाणु पाए गए।
डब्ल्यूएचओ के वर्ल्ड एएमआर अवेयरनेस वीक (18–24 नवंबर) की शुरुआत पर जारी इस रिपोर्ट में तत्काल नीति सुधार और एंटीबायोटिक के जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान की अपील की गई है।
अध्ययन ने भारत, इटली, नीदरलैंड और अमेरिका में एक सामान्य एंडोस्कोपिक प्रक्रिया से गुजर रहे 1,200 से अधिक मरीजों का विश्लेषण किया।
भारत में 83% मरीज एमडीआरओ लेकर चल रहे थे — जो सभी देशों में सबसे अधिक था।
इटली में यह संख्या 31.5%,
अमेरिका में 20.1%,
और नीदरलैंड में 10.8% पाई गई।
भारतीय प्रतिभागियों में पाए गए प्रतिरोधी जीवाणुओं में 70.2% ईएसबीएल-उत्पादक जीवाणु शामिल थे, जिन पर आम एंटीबायोटिक्स असर नहीं करते। साथ ही 23.5% में कार्बापेनेम-प्रतिरोधी जीवाणु पाए गए, जो अंतिम विकल्प वाली दवाओं पर भी असर नहीं होने देते। नीदरलैंड में यह प्रतिरोध लगभग नहीं के बराबर था और अमेरिका में भी बहुत कम पाया गया।
एमडीआरओ का अधिक प्रसार निम्न स्थितियों से जुड़ा मिला:
क्रॉनिक फेफड़ों के रोग,
कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर,
हालिया पेनिसिलिन उपयोग,
बार-बार अस्पताल में भर्ती होना या चिकित्सा प्रक्रियाएँ।
हैदराबाद स्थित एआईजी अस्पतालों के शोधकर्ताओं ने कहा कि एमडीआरओ की मौजूदगी अस्पतालों को अधिक शक्तिशाली और विषाक्त दवाओं का उपयोग करने के लिए मजबूर करती है, जिससे मरीजों की रिकवरी धीमी होती है, जटिलताओं का खतरा बढ़ता है और इलाज की लागत भी बढ़ जाती है।
भारत में, जहां हर साल करीब 58,000 नवजात शिशुओं की मौत दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों से जुड़ी होती है और जहां आईसीयू व कैंसर केंद्रों में लाइलाज बैक्टीरिया आम मिलते हैं— अध्ययन ने स्पष्ट किया कि "एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (एएमआर) अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है।"
एएमआर को नियंत्रित करने के लिए शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया:
डॉक्टर और नागरिक एंटीबायोटिक का उपयोग केवल आवश्यकता पड़ने पर और जिम्मेदारी के साथ करें,
केवल पर्चे पर मिलने वाली दवाओं की बिक्री को सख्ती से नियंत्रित किया जाए,
उच्च-जोखिम मरीजों के लिए प्रक्रियाओं से पहले स्क्रीनिंग हो,
संक्रमण के प्रसार से बचने के लिए सिंगल-यूज़ डिवाइस पर विचार किया जाए।
With inputs from IANS