
नई दिल्ली: गंगा नदी का प्रवाह मुख्य रूप से भूजल (ग्राउंडवाटर) पर निर्भर है, न कि हिमखंडों (ग्लेशियरों) के पिघलने पर — जैसा कि आमतौर पर माना जाता है। यह खुलासा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है।
अध्ययन में बताया गया है कि गंगा के मध्यवर्ती क्षेत्र में भूमिगत जल स्रोत से नदी का प्रवाह लगभग 120 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
वहीं गर्मियों के दौरान नदी के कुल जल का 58 प्रतिशत से अधिक भाग वाष्पीकरण (evaporation) के कारण नष्ट हो जाता है — जो गंगा के जल संतुलन का एक गंभीर लेकिन अनदेखा पहलू है।
यह अध्ययन प्रतिष्ठित जर्नल Hydrological Processes में प्रकाशित हुआ है, जिसमें यह भी बताया गया है कि गर्मियों में इंडो-गैंगेटिक मैदानों में गंगा के प्रवाह में ग्लेशियर से मिलने वाले जल का योगदान नगण्य होता है।
शोध में पाया गया कि हिमालय की तलहटी के आगे ग्लेशियर से जल मिलना लगभग शून्य हो जाता है और पटना तक की गर्मियों की धारा में उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पटना के बाद घाघरा और गंडक जैसी सहायक नदियाँ प्रमुख स्रोत बन जाती हैं।
IIT रुड़की के निदेशक प्रो. के.के. पंत ने कहा,
"यह शोध गंगा की गर्मियों की धारा को समझने के तरीके को नए सिरे से परिभाषित करता है। यह केवल गंगा ही नहीं, बल्कि सभी प्रमुख भारतीय नदियों के लिए एक सतत पुनर्जीवन रणनीति की दिशा में सहायक हो सकता है।"
पहले उपग्रह-आधारित अध्ययनों में उत्तर भारत में भूजल के अत्यधिक दोहन की चेतावनी दी गई थी। लेकिन इस नए अध्ययन, जिसमें गंगा के हिमालयी उद्गम से डेल्टा तक और उसकी प्रमुख सहायक नदियों का व्यापक समस्थानिक विश्लेषण (isotopic analysis) किया गया, में गंगा के मध्य मैदान में भूजल स्तर स्थिर पाए गए हैं।
दरअसल, दशकों से हाथ से चलने वाले पंपों से लगातार जल प्राप्त होना इस बात का प्रमाण है कि एक मजबूत जलभृत (aquifer) प्रणाली आज भी गंगा को गैर-मानसून काल में पोषित कर रही है।
अध्ययन के मुख्य लेखक प्रो. अभयनंद सिंह मौर्य, जो IIT रुड़की के भूविज्ञान विभाग में कार्यरत हैं, ने कहा:
"हमारा विश्लेषण दिखाता है कि गंगा का प्रवाह भूजल की कमी से नहीं, बल्कि **अत्यधिक दोहन, अनियंत्रित मोड़ और सहायक नदियों की उपेक्षा के कारण सूख रहा है। गंगा की छिपी हुई जीवनरेखा अब भी भूजल ही है।"
इस शोध में यह सिफारिश की गई है कि सहायक नदियों का पुनर्जीवन, बैराजों से पर्यावरणीय प्रवाह की वृद्धि, और स्थानीय जल निकायों का संरक्षण ज़रूरी है ताकि जलभृतों को फिर से recharge किया जा सके।
With inputs from IANS