
नई दिल्ली — एक नए अध्ययन के अनुसार, डिमेंशिया से पीड़ित बिल्लियों के मस्तिष्क में होने वाले बदलाव अल्ज़ाइमर रोग से पीड़ित मनुष्यों के समान होते हैं, जिससे यह स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल बन सकती हैं।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने पाया कि डिमेंशिया से पीड़ित बिल्लियों के मस्तिष्क में एमिलॉयड-बीटा नामक जहरीले प्रोटीन का जमाव होता है — जो अल्ज़ाइमर रोग की प्रमुख पहचान में से एक है।
कई उम्रदराज़ बिल्लियों में डिमेंशिया विकसित हो जाता है, जिससे उनके व्यवहार में बदलाव आता है, जैसे ज़्यादा म्याऊं करना, भ्रमित होना और नींद का चक्र बिगड़ना — ये लक्षण मनुष्यों में अल्ज़ाइमर के रोगियों से मिलते-जुलते हैं।
अध्ययन के प्रमुख लेखक और यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर डिस्कवरी ब्रेन साइंसेज़ के रॉबर्ट आई. मैक्गीचैन ने कहा, “ये निष्कर्ष बताते हैं कि एमिलॉयड-बीटा किस तरह उम्र से संबंधित मस्तिष्क की कार्यक्षमता में कमी और स्मृति ह्रास का कारण बन सकता है।” उन्होंने आगे बताया, “अल्ज़ाइमर के अध्ययन में अब तक वैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से जेनेटिकली मॉडिफाइड चूहों पर निर्भर किया है, जबकि चूहे स्वाभाविक रूप से डिमेंशिया विकसित नहीं करते। डिमेंशिया से पीड़ित बिल्लियों का अध्ययन न केवल ज्ञान बढ़ा सकता है, बल्कि बिल्लियों और मनुष्यों — दोनों के लिए उपचार विकसित करने में मदद कर सकता है।”
शोधकर्ताओं ने 25 अलग-अलग उम्र की बिल्लियों के मस्तिष्क की जांच की, जिनमें डिमेंशिया के लक्षण वाली बिल्लियाँ भी शामिल थीं। उच्च-शक्ति वाले माइक्रोस्कोप से पता चला कि उम्रदराज़ और डिमेंशिया से पीड़ित बिल्लियों के मस्तिष्क की सिनैप्स (मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संदेश पहुंचाने वाले संपर्क) में एमिलॉयड-बीटा का जमाव था।
सिनैप्स स्वस्थ मस्तिष्क कार्य के लिए बेहद ज़रूरी हैं और इनका नुकसान, अल्ज़ाइमर से पीड़ित मनुष्यों में स्मृति और सोचने की क्षमता में कमी का बड़ा संकेतक माना जाता है।
टीम को यह भी पता चला कि मस्तिष्क की सहायक कोशिकाएँ — एस्ट्रोसाइट्स और माइक्रोग्लिया — प्रभावित सिनैप्स को निगल रही थीं। इस प्रक्रिया को सिनैप्टिक प्रूनिंग कहा जाता है, जो सामान्यतः मस्तिष्क के विकास में मदद करती है, लेकिन डिमेंशिया में यह सिनैप्स की कमी का कारण बन सकती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ये निष्कर्ष न केवल बिल्लियों में डिमेंशिया को समझने और उसका प्रबंधन करने में मदद करेंगे, बल्कि मनुष्यों में अल्ज़ाइमर के भविष्य के उपचार विकसित करने में भी योगदान दे सकते हैं।
With inputs from IANS