
नई दिल्ली — देश के टियर-2 और टियर-3 शहर फिलहाल केवल 6 प्रतिशत (करीब 82 मेगावॉट) डेटा सेंटर क्षमता रखते हैं, लेकिन ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक यह क्षमता बढ़कर 300–400 मेगावॉट तक पहुंचने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इसी अवधि में देश की कुल डेटा सेंटर क्षमता 4,500 मेगावॉट से अधिक हो जाएगी, जिससे भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा।
अब तक बेंगलुरु, दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर घरेलू डेटा अर्थव्यवस्था पर हावी रहे हैं, लेकिन अब टियर-2 और टियर-3 शहर देश की डिजिटल क्रांति में महत्वपूर्ण ताकत बनकर उभर रहे हैं।
कोच्चि, मोहाली, जयपुर और इंदौर जैसे शहर तेज़ी से एज कंप्यूटिंग, डेटा सेंटर और नवाचार के केंद्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। जो कभी हाशिये पर माने जाते थे, अब विकेंद्रीकृत डिजिटल इंडिया के निर्माण में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
सरकारी नीतियों में सहयोग, व्यापार का विकेंद्रीकरण और स्थानीय डेटा प्रोसेसिंग की बढ़ती ज़रूरत इस बदलाव को गति दे रही है। इन शहरों को आसान कारोबारी माहौल, कम परिचालन लागत और उपयोगकर्ताओं के नज़दीक होने जैसे फायदे हैं।
हालांकि, सफल होने के लिए इन्हें मज़बूत और लचीला डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए। जगह की कमी, कठिन कूलिंग आवश्यकताओं और स्थानीय संसाधनों की कमी को देखते हुए मॉड्यूलर, प्री-इंजीनियर्ड डेटा सेंटर सॉल्यूशंस लोकप्रिय हो रहे हैं।
लिक्विड कूलिंग और एआई-ऑप्टिमाइज़्ड एयरफ्लो जैसी उभरती तकनीकों के चलते एज साइट्स पर हाई-डेंसिटी कंप्यूटिंग संभव हो रही है, वह भी दक्षता से समझौता किए बिना।
अब फोकस केवल पैमाने पर नहीं, बल्कि दक्षता, मजबूती और स्थिरता पर है। एआई-ड्रिवन कूलिंग, स्मार्ट पावर डिस्ट्रीब्यूशन और रियल-टाइम एनर्जी मॉनिटरिंग जैसी तकनीकें एआई और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) की मांग पूरी कर रही हैं, साथ ही पर्यावरणीय लक्ष्यों पर भी खरा उतर रही हैं।
यह एक अहम मोड़ है — भारत की डेटा ग्रोथ कहानी अब सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं रही, बल्कि क्षेत्रीय केंद्र भी देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत बना रहे हैं, नए बाज़ार खोल रहे हैं और डिजिटल खाई को पाट रहे हैं।
इन उभरते केंद्रों में निवेश से हम न केवल क्षमता बढ़ा रहे हैं, बल्कि एक अधिक कनेक्टेड, समावेशी और तेज़तर्रार भारत का निर्माण भी कर रहे हैं।
With inputs from IANS