
नई दिल्ली- नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पूरे देश में उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने और बेहतर मृदा प्रबंधन में सहायक बनाने के लिए (जुलाई तक) किसानों को 25 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं।
फरवरी 2025 तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत कुल 1,706.18 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए हैं।
इसके प्रभाव को और आगे बढ़ाते हुए, भारत की मृदा एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण इकाई ने बड़े पैमाने पर मृदा मानचित्रण भी किया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लगभग 290 लाख हेक्टेयर भूमि (जिसमें 40 आकांक्षी जिले भी शामिल हैं) पर 1:10,000 के पैमाने पर मानचित्रण कार्य पूरा हो चुका है।
किसानों को उर्वरकों का समझदारी से उपयोग करने में मार्गदर्शन देने के लिए 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गाँव स्तर पर 1,987 मृदा उर्वरता मानचित्र तैयार किए गए हैं। ये मानचित्र किसानों को अपनी भूमि और फसलों के लिए सही निर्णय लेने में मदद करते हैं।
साल 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष के रूप में चिह्नित किया गया था। इसी वर्ष, 19 फरवरी को भारत ने अपनी ऐतिहासिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देश की हर कृषि भूमि की पोषण स्थिति का आकलन करना था।
यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान के सूरतगढ़ से आधिकारिक रूप से शुरू की गई थी। यह राज्यों की सरकारों को किसानों को मृदा स्वास्थ्य पर विस्तृत रिपोर्ट उपलब्ध कराने में मदद करती है।
कार्ड में मिट्टी की उर्वरता सुधारने के उपाय और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के सुझाव दिए जाते हैं। वर्ष 2022–23 से इस योजना को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का एक घटक बना दिया गया है, और अब इसे ‘मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता’ नाम से जाना जाता है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनकी प्रत्येक भूमि खंड के लिए एक मुद्रित रिपोर्ट के रूप में दिया जाता है। इसमें 12 प्रमुख मापदंडों के आधार पर मिट्टी की स्थिति बताई जाती है — नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर (मैक्रो-पोषक तत्व); जिंक, आयरन, कॉपर, मैंगनीज़, बोरॉन (सूक्ष्म पोषक तत्व); तथा पीएच (अम्लीयता या क्षारीयता), ईसी (विद्युत चालकता) और ओसी (कार्बनिक कार्बन)।
यह योजना किसानों को नियमित परीक्षण के माध्यम से मिट्टी की आवश्यकताओं को समझने और हर 2 वर्ष में मार्गदर्शन प्रदान करने में सहायक है। प्रत्येक कार्ड किसानों को उनकी भूमि की पोषण स्थिति का स्पष्ट चित्र उपलब्ध कराता है। साथ ही सही मात्रा में उर्वरक, जैव-उर्वरक, कार्बनिक पदार्थ और मिट्टी सुधार के उपाय सुझाता है, ताकि वे अपनी मिट्टी की दीर्घकालिक देखभाल बेहतर ढंग से कर सकें।
With inputs from IANS