
बीजिंग| चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया तिब्बत यात्रा से यह संकेत मिलता है कि बीजिंग वहां ऐसी बढ़त हासिल करना चाहता है जो भारत के साथ शक्ति संतुलन और सीमा वार्ता में उसे ऊपरी हाथ दिला सके। यह बात एक रिपोर्ट में कही गई है।
ऑर्गनाइजेशन फॉर रिसर्च ऑन चाइना एंड एशिया (ORCA) के वरिष्ठ शोध सहयोगी राहुल करण रेड्डी ने एक लेख में लिखा कि चीन के प्रधानमंत्री ली च्यांग ने 21 जुलाई को मेडोंग काउंटी बांध के निर्माण की घोषणा की थी और अब शी जिनपिंग ने इसके विकास को तेज करने के संकेत दिए हैं। इससे लगभग स्पष्ट हो गया है कि यह बांध भारत-चीन सुरक्षा समीकरण में एक बड़ा विवादास्पद मुद्दा बनने वाला है।
रिपोर्ट के अनुसार, “संभव है कि चीन इस परियोजना को भारत के साथ वार्ता में सौदेबाजी का हथियार बना रहा हो। लेकिन शीर्ष नेतृत्व की मंजूरी के साथ अब यह तय है कि भारत-चीन के बीच नदी-जल संबंध और अधिक सुरक्षा-केन्द्रित हो जाएंगे। इसके अलावा, जैसे-जैसे भारत इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताएगा, चीन का यह रुख और कड़ा होगा कि तिब्बत की विकास नीतियां और मेडोंग बांध उसका आंतरिक मामला हैं। तिब्बत का विकास और बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं अब भारत की सीमा सुरक्षा से सीधे जुड़ती जा रही हैं और चीन के साथ सुरक्षा प्रतिस्पर्धा में उलझ रही हैं।”
यात्रा का दूसरा पहलू दलाई लामा के उत्तराधिकार से जुड़ा है। तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (TAR) में शी जिनपिंग की मौजूदगी और सुरक्षा-स्थिरता पर उनका जोर यह स्पष्ट करता है कि चीन तिब्बत पर अपने नियंत्रण को दलाई लामा के उत्तराधिकार मुद्दे से प्रभावित नहीं होने देगा।
ORCA रिपोर्ट में कहा गया, “दलाई लामा द्वारा उत्तराधिकारी की घोषणा चीन के बाहर और उसके प्रभाव से बाहर किए जाने के एक महीने बाद ही शी का TAR का उच्च-स्तरीय दौरा यह दर्शाता है कि बीजिंग का रुख और सख्त हो रहा है। चीन तिब्बत में अपने एकीकरण की रणनीति पर कायम रहेगा और पार्टी द्वारा नियुक्त संस्थानों को वैधता देगा। संभव है कि शी की यह यात्रा दलाई लामा के उत्तराधिकार की प्रक्रिया शुरू होने पर चीन की प्रत्युत्तर रणनीति का आधार तैयार कर रही हो। भारत के लिए इसका अर्थ यह है कि चीन पहले से इस संभावना के लिए तैयार हो रहा है कि नई दिल्ली दलाई लामा के उत्तराधिकारी को समर्थन या वैधता प्रदान कर सकती है।”
भारत और चीन के रिश्ते पिछले साल अक्टूबर से सामान्य स्थिति की ओर बढ़ते दिखे हैं। हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा इस बात का संकेत थी कि दोनों देश सीमा विवाद को लेकर वार्ता और संवाद में जुटे हैं। हालांकि, तिब्बत से जुड़े घटनाक्रम भारत-चीन की सुरक्षा स्थिति को गहराई से प्रभावित करेंगे।
रिपोर्ट में कहा गया, “शी की तिब्बत यात्रा यह कड़ा संदेश है कि वहां के विकास भारत की सीमा सुरक्षा से सीधे जुड़े हैं। मेडोंग काउंटी बांध भारत के कई राज्यों में ‘वॉटर बम’ की आशंका पैदा कर रहा है और इसका निर्माण संवेदनशील सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा संकट को और बढ़ा सकता है। वहीं, दलाई लामा के उत्तराधिकार संबंधी हालिया बयान ने संभवतः बीजिंग को और सख्त रुख अपनाने और तिब्बत पर नियंत्रण दोहराने के लिए प्रेरित किया है। यह पार्टी की घरेलू नीतियों और चीन के बाहरी संकेतों दोनों को दर्शाता है, जो भारत-चीन के बीच सुरक्षा समीकरण को और जटिल बनाते हैं।”
With inputs from IANS