
वॉशिंगटन- अमेरिका में काम कर रहे भारतीय तकनीकी पेशेवरों और बड़ी टेक कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका देते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा कार्यक्रम को सख्त बनाने के लिए नया प्रोक्लेमेशन साइन किया है।
इस प्रोक्लेमेशन के तहत अब हर H-1B वीज़ा आवेदन पर सालाना 1 लाख डॉलर का शुल्क देना होगा। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस कदम से वीज़ा के अत्यधिक इस्तेमाल पर रोक लगेगी और घरेलू अमेरिकी कर्मचारियों की नियुक्ति को बढ़ावा मिलेगा।
शुक्रवार को व्हाइट हाउस में प्रोक्लेमेशन पर हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने कहा, “हमारे लिए सबसे बड़ा प्रोत्साहन अमेरिकी वर्कर्स को नौकरी देना है। हमें वर्कर्स चाहिए और बेहतरीन वर्कर्स चाहिए, और यह कदम उसी दिशा में है।”
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि नई पॉलिसी कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों की नियुक्ति से हतोत्साहित करेगी। उन्होंने कहा, “अब बड़ी टेक कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को ट्रेन नहीं करेंगी। उन्हें पहले सरकार को 1 लाख डॉलर देने होंगे और फिर कर्मचारी को सैलरी देनी होगी। यह आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है। बेहतर है कि कंपनियां हमारे विश्वविद्यालयों से ग्रेजुएट हुए युवाओं को ट्रेन करें और अमेरिकियों को नौकरी दें।”
लुटनिक ने यह भी स्पष्ट किया कि वीज़ा कुल छह साल तक ही नवीनीकृत किया जा सकेगा और यह नियम नए तथा नवीनीकरण दोनों प्रकार के आवेदन पर लागू होगा।
प्रोक्लेमेशन में कहा गया कि H-1B वीज़ा कार्यक्रम का “जानबूझकर दुरुपयोग किया गया है” ताकि अमेरिकी कर्मचारियों को कम वेतन और कम कौशल वाले विदेशी श्रमिकों से बदला जा सके, जिससे “आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा” दोनों को खतरा हुआ है।
आदेश में श्रम सचिव को भी वर्तमान वेतन स्तरों की समीक्षा कर नया नियम बनाने का निर्देश दिया गया है।
ट्रंप और लुटनिक का दावा है कि सभी बड़ी टेक कंपनियां इस फैसले के समर्थन में हैं। ट्रंप ने कहा, “वे इसे पसंद कर रहे हैं। यह उन्हें चाहिए। मुझे लगता है कि वे बहुत खुश होंगे और हमारे देश में उत्पादक लोग रह पाएंगे।”
इसके साथ ही ट्रंप ने एक नया गोल्ड कार्ड प्रोग्राम भी शुरू करने का ऐलान किया, जिसके तहत लोग 10 लाख डॉलर देकर वीज़ा ले सकेंगे, जबकि कॉरपोरेशनों के लिए यह शुल्क 20 लाख डॉलर होगा।
गौरतलब है कि H-1B वीज़ा प्रोग्राम के तहत अमेरिका हर साल 85,000 नए वीज़ा जारी करता है, जिनसे टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में कुशल विदेशी कर्मचारियों की भर्ती की जाती है। यह नया कदम बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों को भी प्रभावित करेगा।
प्यू रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में जारी कुल H-1B वीज़ा का लगभग 73 प्रतिशत भारत-जनित कर्मचारियों को मिला था, जबकि चीन को 12 प्रतिशत, जिसकी बड़ी वजह भारत से आने वाले कुशल प्रवासियों की अधिक संख्या और अप्रूवल में बैकलॉग थी।
अगस्त में अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने मौजूदा लॉटरी प्रणाली को हटाकर “वेटेड सिलेक्शन प्रोसेस” लागू करने का प्रस्ताव रखा था। वहीं डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (DoJ) ने भी H-1B कार्यक्रम की जांच तेज की थी और अमेरिकी नागरिकों की जगह विदेशी कर्मचारियों को तरजीह देने के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए कहा था। इस पहल का नेतृत्व भारतवंशी असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल हरमीत ढिल्लों कर रही हैं।
ढिल्लों ने अगस्त में बताया था कि विभाग ने कई जांच शुरू कर दी हैं और कुछ नियोक्ताओं पर कार्रवाई भी की है। उन्होंने अमेरिकियों से अपील की थी कि DoJ हॉटलाइन पर अपनी शिकायतें भेजें।
दिलचस्प बात यह है कि दिसंबर 2024 के चुनावों के बाद ट्रंप ने H-1B वीज़ा का समर्थन किया था और कहा था कि वे “इस प्रोग्राम में विश्वास करते हैं और खुद भी इसका इस्तेमाल कर चुके हैं।”
उन्होंने कहा था, “मेरे पास कई H-1B वीज़ा वाले कर्मचारी हैं। मैं हमेशा से इस प्रोग्राम का समर्थक रहा हूं। यह एक शानदार योजना है।”
हालांकि, ट्रंप को इस मुद्दे पर दूर-दराज़ (far-right) कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा था। टेस्ला के सीईओ और ट्रंप के पूर्व सहयोगी एलन मस्क ने भी H-1B वीज़ा बचाने के लिए “लड़ाई” का ऐलान किया था।
With inputs from IANS