ट्रेनरों से कमांडरों तक — पाक सेना ने जेएम, लेट और हिज़्बुल के प्रशिक्षण पर लिया प्रत्यक्ष नियंत्रणBy Admin Sun, 28 September 2025 07:09 AM

नया दिल्ली — पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंडूर से बुरी तरह प्रभावित तीन आतंकवादी संगठनों — जैश-ए-मोहम्मद (जेएम), लश्कर-ए-तैयबा (लेट) और हिज़्बुल मुजाहिद्दीन — को फिर से सक्रिय करने की कवायद तेज कर दी है। इस नई रणनीति में सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब इन समूहों के प्रशिक्षण शिविरों में सीधे पाकिस्तानी सेना के अधिकारी तैनात किए जा रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार अब इन सभी शिविरों का नेतृत्व मेजर रैंक के अधिकारी करेंगे और इन शिविरों को पाक सेना की ओर से सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इससे पहले विंग-लेवल कमांडर जो सेना द्वारा प्रशिक्षित होते थे, शिविरों के संचालन की देखरेख करते थे — अब नियंत्रण बहुत अधिक सीधे और संस्थागत हो चुका है।

इसके साथ ही ISI इन शिविरों को तकनीकी रूप से सुदृढ़ करने पर भी काम कर रही है। पारंपरिक हथियारों से हटकर हाई-टेक हथियारों और ड्रोन तकनीक पर जोर दिया जा रहा है, जिनके माध्यम से जम्मू और कश्मीर में सटीक हमले संभव बने, यह आशंका व्यक्त की जा रही है। डिजिटल युद्धक (digital warfare) उपकरणों का भी व्यापक इस्तेमाल किया जाएगा।

पाक सेना और ISI के इस हस्तक्षेप के पीछे कई कारण बताए गए हैं:

  • पाकिस्तान यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भविष्य में इन शिविरों पर किसी भारतीय कार्रवाई के दौरान फिर से भारी क्षति न पहुंचे।

  • पाकिस्तान चाहता है कि उसके सुरक्षा एजेंटों के नियंत्रण में ये समूह अपने देश से ही भारत पर प्रहार करने में सक्षम हों।

  • पाकिस्तान की सेनाएँ देश के अन्य उठते हुए खतरों — विशेषकर बलोचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी (BLA) और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) — से निपटने के लिए ध्यान भटकाने हेतु भारतीय सेना को व्यस्त रखनी चाहती हैं।

रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान ने अमेरिका और चीन के साथ अपनी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं के मद्देनजर बलोचिस्तान और CPEC 2.0 जैसी परियोजनाओं की सुरक्षा पर भी ध्यान देना है। आर्थिक दबावों और अंतरराष्ट्रीय वादों के कारण उसे घरेलू तौर पर स्थिरता दिखानी आवश्यक है — यही वजह है कि वह खाड़ी देशों में बसे आबाद लोगों से बड़ी मातरा में दान-संग्रह कर रहा है।

ISI द्वारा तीनों समूहों के आधुनिकीकरण के लिए वार्षिक रूप से प्रत्येक समूह पर कम-से-कम ₹100 करोड़ तक के निवेश की योजना बताई जा रही है। इन भारी निवेशों और सीधी सैन्य निगरानी के चलते इन समूहों के शीर्ष नेताओं की भूमिका अब सीमित हो कर केवल भर्ती, युवाओं का रैडिकलाइज़ेशन और संगठनात्मक प्रचार तक सिमटने की संभावना है, जबकि सैन्य और तकनीकी निर्णय सीधे पाक सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा नियंत्रित होंगे।

 

With inputs from IANS