
वाशिंगटन — अमेरिका की नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी (NSS) ने दक्षिण कोरिया की सुरक्षा, उसकी क्षेत्रीय भूमिका और इंडो-पैसिफिक में बदलते शक्ति-संतुलन को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
गुरुवार को जारी इस रणनीति में व्हाइट हाउस ने 1823 के मोनरो डॉक्ट्रिन के ट्रंप संस्करण को लागू करने की योजना घोषित की, जो अमेरिकी अलगाववाद का प्रतीक माना जाता है। इसमें ताइवान की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है और पहली द्वीप-श्रृंखला (First Island Chain) की रक्षा में दक्षिण कोरिया-जापान की बड़ी भूमिका पर जोर दिया गया है—लेकिन उल्लेखनीय रूप से उत्तर कोरिया के न्यूक्लियर डी-न्यूक्लियराइजेशन का कोई जिक्र नहीं किया गया।
यह दस्तावेज ऐसे समय आया है जब सियोल और वॉशिंगटन अपने गठबंधन को “आधुनिकीकरण” की दिशा में ले जा रहे हैं, जिसके तहत दक्षिण कोरिया को अपनी रक्षा में अधिक भूमिका निभानी होगी और “क्षेत्रीय” खतरों—विशेष रूप से चीन की आक्रामकता—से निपटने में योगदान देना होगा।
NSS में कहा गया है:
“हम एक ऐसी सेना बनाएंगे जो पहली द्वीप-श्रृंखला में कहीं भी आक्रमण को रोक सके। लेकिन अमेरिकी सेना यह अकेले नहीं कर सकती — और न ही करनी चाहिए। हमारे सहयोगियों को आगे आना होगा, अधिक खर्च करना होगा और सामूहिक रक्षा में अधिक करना होगा।”
यह स्पष्ट संकेत है कि दक्षिण कोरिया और जापान को अपनी सैन्य क्षमता बढ़ानी होगी, खासकर ऐसे क्षेत्रों में जो चीन को रोकने के लिए आवश्यक हैं।
लेकिन सियोल में चिंता यह है कि यदि दक्षिण कोरिया ताइवान या व्यापक इंडो-पैसिफिक सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाता है, तो इससे उत्तर कोरिया को रोकने पर उसका ध्यान कमजोर हो सकता है और चीन के साथ तनाव बढ़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि वॉशिंगटन दक्षिण कोरिया पर यह दबाव बढ़ा सकता है कि वह चीन को ताइवान पर हमला करने से रोकने में सहयोग दे।
इसके अलावा, अमेरिका चाहता है कि कोरिया में मौजूद अमेरिकी सैन्य बलों (USFK) को चीन-संबंधित किसी भी आकस्मिक स्थिति में अधिक लचीले तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।
NSS में “ट्रंप कोरोलरी” के तहत पश्चिमी गोलार्ध (Western Hemisphere) में अमेरिकी प्रभुत्व फिर से स्थापित करने की बात कही गई है। इससे आशंका पैदा हुई है कि यदि अमेरिका कुछ हद तक अलगाववादी रुख अपनाता है, तो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उसकी प्रतिबद्धता कमजोर हो सकती है।
दस्तावेज़ में इस चिंता को कम करने के लिए उल्लेख किया गया है कि अमेरिका पश्चिमी प्रशांत में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत करेगा।
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि दक्षिण कोरिया में तैनात 28,500 अमेरिकी सैनिकों की संख्या बरकरार रहेगी या नहीं।
नई NSS में उत्तर कोरिया का स्पष्ट उल्लेख नहीं है—न ही डी-न्यूक्लियराइजेशन का।
पिछले NSS (2017, 2022) में कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु-मुक्त करने का लक्ष्य प्रमुख था।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह संकेत हो सकता है कि ट्रंप प्रशासन उत्तर कोरिया मुद्दे को कम प्राथमिकता दे रहा है।
वहीं अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह रणनीति कूटनीतिक लचीलापन बनाए रखने का तरीका भी हो सकता है, ताकि भविष्य में ट्रंप-किम शिखर वार्ता की गुंजाइश बनी रहे।
दक्षिण कोरिया ऐसी परिस्थितियों में फंसा है जहाँ:
चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है
चीन उत्तर कोरिया के साथ बातचीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
वहीं अमेरिका उसका सुरक्षा-आधारित सबसे बड़ा सहयोगी है
अमेरिकी दस्तावेज में दक्षिण कोरिया के लिए अपेक्षाएँ बहुत बढ़ा दी गई हैं, लेकिन इससे उसकी क्षेत्रीय संतुलन नीति मुश्किल में पड़ सकती है।
नई NSS अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” सोच और एशिया में शक्ति समीकरण बदलने की उसकी तैयारी को दर्शाती है।
लेकिन उत्तर कोरिया का उल्लेख न करना, ताइवान की रक्षा पर जोर और सहयोगियों पर अतिरिक्त जिम्मेदारी—ये सभी कारक सियोल के लिए जटिल रणनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं।
With inputs from IANS