संयुक्त राष्ट्र — संयुक्त राष्ट्र में शांति अभियानों के अवर महासचिव ज्यां-पियरे लाक्रुआ ने कहा है कि शांति रक्षकों पर हमले करने वालों को न्याय के कटघरे तक पहुंचाने की दिशा में भारत की अग्रणी भूमिका बेहद अहम है।
उन्होंने गुरुवार को कहा, “शांति रक्षकों के खिलाफ अपराधों की जवाबदेही तय करने के लिए भारत द्वारा उठाया गया नेतृत्व न केवल सैनिकों और पुलिस बलों की तैनाती तक सीमित है, बल्कि यह शांति रक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है।”
भारत, 2022 में गठित 39 देशों के ‘शांति रक्षकों के खिलाफ अपराधों की जवाबदेही को बढ़ावा देने वाले मित्र समूह’ का नेतृत्व करता है। उसी वर्ष भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पारित करवाया, जिसमें शांति रक्षक मिशनों की मेज़बान सरकारों से आग्रह किया गया कि वे शांति रक्षकों पर हमलों की जांच करें, दोषियों को सजा दें, और दंडमुक्ति समाप्त करने के लिए आवश्यक सहयोग प्राप्त करें। साथ ही, ऐसे हमलों का यूएन डाटाबेस बनाने की भी बात कही गई।
लाक्रुआ ने जानकारी दी कि इस वर्ष अब तक 5 शांति रक्षकों की जान हमलों में गई है।
भारत इस वर्ष महिला शांति रक्षकों के पहले वैश्विक सम्मेलन का मेज़बान रहा, जो नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। इस अवसर पर लाक्रुआ ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अब महिला शांति रक्षकों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें नेतृत्व पदों पर भी देखना चाहता है।
उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि और अधिक वरिष्ठ महिला जनरल अधिकारी फोर्स कमांडर जैसे पदों के लिए आवेदन करें, ताकि महिला नेतृत्व की भागीदारी बढ़े।”
उन्होंने इसे एक चल रही प्रक्रिया बताया और उदाहरण के तौर पर अपने पास बैठीं मेजर जनरल चेरिल ऐन पियर्स की ओर इशारा किया, जो वर्तमान में यूएन शांति अभियानों विभाग में सैन्य सलाहकार हैं।
लाक्रुआ ने यह भी कहा कि नेतृत्व में महिलाओं की भागीदारी से शांति रक्षा अभियानों की प्रभावशीलता और महिला सशक्तिकरण दोनों में बढ़ोतरी होती है।
संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अभियानों में भारत के 5,375 'ब्लू हेलमेट्स' तैनात हैं, जिनमें से 151 महिलाएं हैं। भारत ने 2007 में लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र के मिशन के लिए पहली संपूर्ण महिला सशस्त्र पुलिस इकाई (FPU) भेजी थी।
2003 में किरण बेदी संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला सिविलियन पुलिस सलाहकार बनी थीं।
With inputs from IANS