
नई दिल्ली| भारतीय उत्पादों पर अमेरिकी टैरिफ बुधवार (अमेरिकी समय) से प्रभावी होने जा रहे हैं। इससे वस्त्र और रत्न-ज्वेलरी जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर मध्यम दबाव पड़ने की संभावना है, जबकि दवा उद्योग, स्मार्टफोन और इस्पात को छूट, मौजूदा टैरिफ ढांचे और घरेलू खपत की मजबूती के चलते अपेक्षाकृत सुरक्षा मिलेगी।
एसबीआई रिसर्च की नई रिपोर्ट के अनुसार, इन टैरिफ का असर अमेरिकी जीडीपी पर 40-50 बेसिस पॉइंट तक हो सकता है और इससे इनपुट लागत महंगाई बढ़ने की आशंका है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “50 प्रतिशत टैरिफ के चलते 45 अरब डॉलर का निर्यात प्रभावित होगा। सबसे खराब स्थिति में भारत का व्यापार अधिशेष व्यापार घाटे में बदल सकता है। हालांकि हमें उम्मीद है कि व्यापार वार्ता से भरोसा बहाल होगा और अमेरिका को निर्यात सुधरेगा।”
उच्च टैरिफ के बीच भारत के उत्पाद प्रतिस्पर्धात्मकता खो सकते हैं, जिससे चीन और वियतनाम जैसे देशों को फायदा हो सकता है। गौरतलब है कि भारत पर लगाया गया टैरिफ एशियाई देशों की तुलना में ज्यादा है—चीन पर 30 प्रतिशत, वियतनाम पर 20 प्रतिशत, इंडोनेशिया पर 19 प्रतिशत और जापान पर 15 प्रतिशत।
रिपोर्ट में कहा गया, “अमेरिका भारत के वस्त्र निर्यात का सबसे बड़ा गंतव्य है। पिछले पांच वर्षों में भारत ने इस क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी लगातार बढ़ाई है, जबकि चीन की हिस्सेदारी काफी घटी है। यह बदलाव अमेरिकी सप्लाई चेन में भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाता है।”
रत्न और ज्वेलरी क्षेत्र के लिए भी अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है, जो इस क्षेत्र के 28.5 अरब डॉलर के वार्षिक निर्यात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा खरीदता है। टैरिफ 25 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत होने से इस क्षेत्र के निर्यातकों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
झींगा निर्यातक, जो अपने उत्पादन का आधे से ज्यादा हिस्सा अमेरिका भेजते हैं, भारी नुकसान और ऑर्डर रद्द होने की आशंका जता रहे हैं। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें भी बढ़ेंगी और भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता इक्वाडोर जैसे प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले कमजोर होगी।
अमेरिका ने भारत से फार्मा आयात को टैरिफ से मुक्त रखा है। 2024 में अमेरिकी दवा आयात में भारत की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत रही, जबकि भारत के कुल फार्मा निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका को जाता है (वित्त वर्ष 2024-25)।
इस बीच, अमेरिका में नए टैरिफ और कमजोर डॉलर के असर से मुद्रास्फीति का दबाव फिर बढ़ने लगा है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो और कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे आयात-निर्भर क्षेत्रों में इसका असर ज्यादा दिखेगा।
अनुमान है कि अमेरिकी मुद्रास्फीति 2026 तक 2 प्रतिशत के लक्ष्य से ऊपर बनी रहेगी, जिसका मुख्य कारण टैरिफ और विनिमय दरों से जुड़े आपूर्ति-पक्षीय प्रभाव होंगे।
With inputs from IANS