
नई दिल्ली। जुलाई में भारत के औद्योगिक उत्पादन (IIP) में मजबूत उछाल दर्ज किया गया है। जून के 1.5 प्रतिशत की तुलना में यह बढ़कर 3.5 प्रतिशत हो गया, जिसमें विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) और अवसंरचना क्षेत्रों की अहम भूमिका रही। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह रिकवरी वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद स्वस्थ रफ्तार का संकेत है।
आईसीआरए लिमिटेड की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि जुलाई के आंकड़े सभी क्षेत्रों में व्यापक सुधार को दर्शाते हैं।
विशेष रूप से विनिर्माण उत्पादन में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो छह महीने में सबसे ऊंचा स्तर है। इसमें निर्माण सामग्री और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की मजबूत मांग का योगदान रहा।
अवसंरचना और निर्माण संबंधी वस्तुओं में 11.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो लगभग दो वर्षों का सर्वोच्च स्तर है। इसमें सीमेंट और इस्पात प्रमुख कारक रहे।
नायर ने बताया कि उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन 7.7 प्रतिशत बढ़ा, जिसका कारण प्री-फेस्टिव स्टॉकिंग और जीएसटी ई-वे बिल गतिविधियों में तेजी रही।
उन्होंने आगे कहा कि अप्रैल-जुलाई अवधि में पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन 8.6 प्रतिशत बढ़ा, जिसमें मशीनरी निर्यात और सरकारी पूंजीगत व्यय का योगदान रहा। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि वैश्विक अनिश्चितताओं और टैरिफ संबंधी चिंताओं के कारण निजी निवेश धीमा रह सकता है।
अदिति नायर का मानना है कि आगे चलकर मौद्रिक सहजता (monetary easing) और जीएसटी सरलीकरण शहरी खपत को बढ़ावा दे सकते हैं, लेकिन भारी बारिश के चलते अगस्त में वृद्धि 3 प्रतिशत से नीचे रह सकती है।
क्रिसिल लिमिटेड की प्रिंसिपल इकॉनॉमिस्ट दीप्ति देशपांडे ने जुलाई की IIP वृद्धि को “पूर्वानुमानित उछाल” (anticipatory surge) बताया, जिसमें सरकारी अवसंरचना खर्च और अमेरिका में टैरिफ बढ़ने से पहले मजबूत निर्यात गतिविधियों का योगदान रहा।
उन्होंने कहा कि धातु, मशीनरी, फार्मा, ऑटो कंपोनेंट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों ने मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन को सहारा दिया।
हालांकि, जुलाई में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं में तेज वृद्धि हुई, वहीं गैर-टिकाऊ वस्तुओं में खाद्य उत्पादों के कमजोर प्रदर्शन के कारण केवल मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई।
देशपांडे ने चेतावनी दी कि हाल ही में अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे टैरिफ, जो भारत के लिए अन्य देशों की तुलना में सबसे सख्त हैं, आने वाले महीनों में निर्यात पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं, खासकर टेक्सटाइल, जेम्स एंड ज्वेलरी और केमिकल्स जैसे क्षेत्रों में।
उन्होंने कहा कि एमएसएमई, जो भारत के लगभग 45 प्रतिशत निर्यात में योगदान करते हैं, इस झटके से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।
फिर भी, देशपांडे ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों से बढ़ती घरेलू मांग निर्यात में आई गिरावट की भरपाई करने में मदद कर सकती है।
उन्होंने कहा, “आगामी तिमाहियों में उपभोक्ता मांग में तेजी आने की संभावना है, जो विकास को सहारा देगी।”
With inputs from IANS