अमेरिकी टैरिफ भारतीय दवा कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती नहींBy Admin Sun, 28 September 2025 07:05 AM

नई दिल्ली- अमेरिका द्वारा ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% आयात शुल्क लगाने का फैसला भारतीय दवा कंपनियों के लिए कोई बड़ी चिंता नहीं है। विश्लेषकों के मुताबिक, इसका असर सीमित रहेगा क्योंकि भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात का बड़ा हिस्सा जेनेरिक और ऑफ-पेटेंट दवाओं का है, जिन पर यह टैरिफ लागू नहीं होगा।

क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर अनुज सेठी ने कहा, “अक्टूबर 2025 से लागू होने वाला यह टैरिफ भारतीय कंपनियों पर ज्यादा असर नहीं डालेगा। कुछ घरेलू कंपनियों की ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं में मौजूदगी है, लेकिन उनकी हिस्सेदारी राजस्व में बहुत कम है।”

उन्होंने बताया कि इन दवाओं की मांग गैर-वैकल्पिक (non-discretionary) होने के कारण, टैरिफ की लागत ज्यादातर उपभोक्ताओं तक स्थानांतरित की जा सकेगी। साथ ही, कई भारतीय कंपनियों की अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भी हैं, जिससे वे नई दरों से मुक्त रहेंगी।

टैरिफ वृद्धि का मुख्य असर बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे Pfizer और Novo Nordisk जैसी बड़ी कंपनियों पर पड़ेगा, जो अमेरिका में महंगी ब्रांडेड दवाएं बेचती हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने इन कंपनियों की ऊंची दवा कीमतों की आलोचना करते हुए ही यह कदम उठाया है।

इसके उलट, भारत की जेनेरिक दवाएं अमेरिका में किफायती विकल्प के रूप में लोकप्रिय हैं, जो कैंसर से लेकर डायबिटीज जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोग होती हैं। अमेरिका में बिकने वाली करीब 40% जेनेरिक दवाएं भारत से आयात की जाती हैं।

भारतीय कंपनियां हर साल अमेरिका को लगभग 20 अरब डॉलर मूल्य की जेनेरिक दवाएं निर्यात करती हैं। इसमें सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज़ लैब्स, सिप्ला, लुपिन और औरोबिंदो फार्मा प्रमुख निर्यातक हैं। कुल मिलाकर, अमेरिकी बाज़ार भारत की फार्मा निर्यात आय का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है।

 

With inputs from IANS