
नई दिल्ली — भारत में तांबे की मांग वित्त वर्ष 2025 में 9.3 प्रतिशत बढ़कर **1,878 किलो टन (KT)** हो गई है। यह वृद्धि बड़े पैमाने पर चल रहे **इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स**, **निर्माण क्षेत्र**, **स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण** और **उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (consumer durables)** के उत्पादन में तेजी के कारण हुई है, जहां तांबा एक आवश्यक घटक के रूप में उपयोग होता है। यह जानकारी **इंटरनेशनल कॉपर एसोसिएशन इंडिया (ICA India)** ने बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में दी।
वित्त वर्ष 2024 में भारत की तांबे की मांग **1,718 किलो टन** थी (1 किलो टन = 1,000 टन)।
ICA इंडिया के अनुसार, **निर्माण और अवसंरचना क्षेत्र** तांबे की मांग के सबसे बड़े योगदानकर्ता रहे, जिन्होंने क्रमशः **11 प्रतिशत** और **17 प्रतिशत** की वार्षिक वृद्धि दर्ज की।
**नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र** ने भी इस अवधि में अपनी क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि की, जबकि **उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं** की मांग में **19 प्रतिशत** की बढ़ोतरी दर्ज हुई — जिसमें एयर कंडीशनर, पंखे और अन्य घरेलू उपकरणों की रिकॉर्ड बिक्री शामिल है।
**ऑटोमोबाइल क्षेत्र**, जिसमें **इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)** भी शामिल हैं, में कुल मिलाकर **5 प्रतिशत** की वृद्धि देखी गई। विशेष रूप से **दोपहिया और तिपहिया वाहनों** की मांग में **16 प्रतिशत** की तेज़ वृद्धि दर्ज की गई, जो स्वच्छ गतिशीलता (clean mobility) में तांबे की अहम भूमिका को दर्शाती है। वहीं, **इंडस्ट्रियल मोटर सेगमेंट** में **12 प्रतिशत** की वृद्धि हुई।
ICA इंडिया के प्रबंध निदेशक **मयूर कर्माकर** ने कहा,
“भारत में तांबे की मांग की रफ्तार देश की आर्थिक और औद्योगिक प्रगति को प्रतिबिंबित करती है। नवीकरणीय ऊर्जा, सतत गतिशीलता और अवसंरचना विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने तांबे की मांग को बढ़ाया है, जिससे यह देश की वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बन गया है। लेकिन सवाल यह है कि — क्या मौजूदा गति भारत के **‘विकसित भारत @2047’** लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त है?”
उन्होंने कहा कि भविष्य की वृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारत को **तांबे के कार्यात्मक भंडार (functional reserves)** विकसित करने और **घरेलू आपूर्ति श्रृंखला (supply chain)** को मजबूत करने की दिशा में सक्रिय योजना बनानी होगी।
कर्माकर ने आगे कहा,
“इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छ ऊर्जा और मोबिलिटी जैसे अंतिम उपयोगकर्ता क्षेत्र (end-user sectors) तो केंद्र में रहेंगे ही, लेकिन देश में **कॉपर फैब्रिकेशन क्षमताओं** को बढ़ाना और **आयात प्रतिस्थापन रणनीतियों (import substitution)** को बढ़ावा देना भी उतना ही जरूरी है। यह भारत की विकास महत्वाकांक्षाओं को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होगा कि तांबा देश की प्रगति को आगे बढ़ाता रहे।”
With inputs from IANS