
नई दिल्ली — देश के शीर्ष उद्योग संगठन कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) ने रविवार को भारत की दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि, लचीलापन और वैश्विक आर्थिक सुरक्षा को सशक्त करने के लिए एक नया संस्थान — इंडिया डेवलपमेंट एंड स्ट्रैटेजिक फंड (IDSF) — बनाने का प्रस्ताव रखा है।
यह फंड एक सॉवरेन समर्थित (sovereign-backed) और पेशेवर ढंग से प्रबंधित राष्ट्रीय संस्था के रूप में कार्य करेगा, जो भारत की घरेलू उत्पादक क्षमता को बढ़ाने और विदेशों में उसके रणनीतिक आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिए दीर्घावधि पूंजी जुटाएगा।
सीआईआई के अनुसार, आईडीएसएफ को दो समन्वित भागों में विभाजित किया जाएगा —
डेवलपमेंटल इन्वेस्टमेंट आर्म (Developmental Investment Arm)
स्ट्रैटेजिक इन्वेस्टमेंट आर्म (Strategic Investment Arm)
यह खंड भारत की दीर्घावधि घरेलू प्राथमिकताओं के वित्तपोषण पर केंद्रित होगा, जैसे —
आधारभूत संरचना (infrastructure)
स्वच्छ ऊर्जा (clean energy)
लॉजिस्टिक्स और औद्योगिक कॉरिडोर
एमएसएमई का विस्तार
शिक्षा एवं कौशल विकास
स्वास्थ्य सेवा
शहरी बुनियादी ढांचा
यह खंड ऐसे वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य प्रोजेक्ट्स में दीर्घकालिक निवेश और ब्लेंडेड फाइनेंस उपलब्ध कराएगा, जिन्हें लंबे समय तक पूंजी की आवश्यकता होती है। साथ ही यह एंकर इन्वेस्टर के रूप में कार्य करेगा, जिससे घरेलू और विदेशी पेंशन फंड, सॉवरेन वेल्थ फंड और संस्थागत निवेशक आकर्षित होंगे।
सीआईआई ने सुझाव दिया है कि भारत का मौजूदा नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (NIIF) इस डेवलपमेंटल आर्म के रूप में विकसित किया जा सकता है, जिससे इसकी शासन संरचना और वैश्विक निवेशक आधार का लाभ उठाया जा सके।
यह खंड उन विदेशी परिसंपत्तियों (overseas assets) के अधिग्रहण और सुरक्षा पर केंद्रित होगा जो भारत की दीर्घकालिक आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें शामिल हैं —
ऊर्जा संपत्तियाँ (oil & gas fields, LNG इन्फ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन हाइड्रोजन साझेदारी)
महत्वपूर्ण खनिज (लिथियम, कोबाल्ट, रेयर अर्थ्स)
अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियाँ (सेमीकंडक्टर, एआई, बायोटेक्नोलॉजी)
वैश्विक लॉजिस्टिक्स और बंदरगाह संपत्तियाँ
यह भारत को केवल “खरीदार” नहीं, बल्कि “स्वामी” के रूप में स्थापित करेगा — ताकि भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देने वाली आपूर्ति श्रृंखलाओं और तकनीकों में भारत की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
सीआईआई का मानना है कि अनुशासित संरचना और पर्याप्त वित्तपोषण के साथ, यह फंड 2047 तक $1.3 से $2.6 ट्रिलियन तक का प्रबंधित कोष तैयार कर सकता है — जो विश्व के प्रमुख सॉवरेन फंड्स के समकक्ष होगा।
प्रस्तावित योजना के अनुसार —
प्रारंभिक चरण में सीमित बजटीय आवंटन से फंड की विश्वसनीयता स्थापित की जाएगी।
इसके बाद सड़कों, ट्रांसमिशन लाइनों, बंदरगाहों और स्पेक्ट्रम जैसी परिसंपत्तियों के मॉनेटाइजेशन से प्राप्त धन का हिस्सा इस फंड में डाला जाएगा।
समय के साथ, सरकार की कुछ सार्वजनिक उपक्रमों में इक्विटी हिस्सेदारी भी फंड को हस्तांतरित की जा सकती है, ताकि ये कंपनियाँ भारत के वैश्विक विस्तार के साधन बनें, न कि केवल विनिवेश के।
इसके अतिरिक्त, फंड इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड, ग्रीन बॉन्ड और डायस्पोरा बॉन्ड जैसे विषयगत साधनों के माध्यम से लंबी अवधि की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बचत को आकर्षित कर सकता है। साथ ही, यह बहुपक्षीय और द्विपक्षीय भागीदारों के साथ सह-निवेश भी कर सकेगा।
जब भारत के मौद्रिक भंडार (forex reserves) पर्याप्त रूप से स्थिर हो जाएंगे, तब फंड के माध्यम से सीमित भाग का उपयोग विदेशों में रणनीतिक अधिग्रहणों — जैसे ऊर्जा और खनिज क्षेत्रों में — किया जा सकता है।
सीआईआई ने जोर दिया है कि फंड का बहुमत स्वामित्व और रणनीतिक नियंत्रण भारत सरकार के पास रहना चाहिए, जबकि इसका संचालन पेशेवर बोर्ड द्वारा किया जाए, जिसमें वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधि और वैश्विक निवेश विशेषज्ञ शामिल हों।
दो अलग-अलग निवेश समितियाँ (Investment Committees) डेवलपमेंटल और स्ट्रैटेजिक आर्म्स की निगरानी करेंगी, जिससे फोकस और जवाबदेही दोनों सुनिश्चित हों।
फंड को नियमित रूप से “आईडीएसएफ रिव्यू रिपोर्ट” प्रकाशित करने और अपने कोष, निवेश मिश्रण, क्षेत्रीय फोकस और प्रदर्शन मीट्रिक्स का सार्वजनिक डैशबोर्ड जारी करने की सिफारिश भी की गई है।
सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा,
“यह प्रस्ताव इस समझ पर आधारित है कि भारत के विकास लक्ष्यों — जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा संक्रमण, विनिर्माण, प्रौद्योगिकी और मानव विकास — को हासिल करने के लिए वार्षिक बजटीय आवंटन पर्याप्त नहीं हैं। यह फंड घरेलू और वैश्विक बचत को संगठित करेगा तथा परिपक्व परिसंपत्तियों से राष्ट्रीय पूंजी को नए उत्पादक क्षेत्रों में पुनर्निवेशित करेगा।”
With inputs from IANS