
नई दिल्ली — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में बुधवार को 25,060 करोड़ रुपये की लागत वाले ‘निर्यात संवर्धन मिशन (Export Promotion Mission - EPM)’ को मंज़ूरी दी गई। इस मिशन का उद्देश्य भारत के निर्यात तंत्र को सुदृढ़ बनाना है।
यह फ्लैगशिप पहल पहली बार केंद्रीय बजट 2025–26 में घोषित की गई थी, जिसका मकसद भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को मज़बूत करना है, विशेष रूप से एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों), पहली बार निर्यात करने वाले उद्यमियों, और श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए।
यह मिशन एक व्यापक, लचीला और डिजिटल ढांचे के माध्यम से निर्यात संवर्धन को बढ़ावा देगा। यह वित्त वर्ष 2025–26 से 2030–31 तक लागू रहेगा और विभिन्न बिखरी हुई योजनाओं को एकीकृत कर एक परिणाम-आधारित और अनुकूलनशील तंत्र के रूप में कार्य करेगा, जो वैश्विक व्यापारिक चुनौतियों और निर्यातकों की बदलती आवश्यकताओं का तेजी से जवाब दे सकेगा।
सरकारी बयान के अनुसार, EPM के तहत उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी जो हाल के वैश्विक टैरिफ वृद्धि से प्रभावित हुए हैं — जैसे कि टेक्सटाइल, लेदर, रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग वस्तुएं और समुद्री उत्पाद। यह पहल निर्यात आदेशों को बनाए रखने, रोजगारों की सुरक्षा करने और नए बाज़ारों में विस्तार में मदद करेगी।
यह मिशन एक सहयोगात्मक ढांचे पर आधारित होगा, जिसमें वाणिज्य विभाग, एमएसएमई मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, और अन्य प्रमुख हितधारक — जैसे वित्तीय संस्थान, निर्यात संवर्धन परिषदें, कमोडिटी बोर्ड, उद्योग संघ, और राज्य सरकारें — शामिल होंगे।
मिशन दो उप-योजनाओं के माध्यम से संचालित होगा —
‘निर्यात प्रोत्साहन (Niryat Protsahan)’
‘निर्यात दिशा (Niryat Disha)’
🔹 ‘निर्यात प्रोत्साहन’ का लक्ष्य एमएसएमई के लिए सुलभ व्यापार वित्त उपलब्ध कराना है। इसके तहत ब्याज सबवेंशन, एक्सपोर्ट फैक्टरिंग, जमानत गारंटी, ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए क्रेडिट कार्ड, और नए बाज़ारों में विस्तार के लिए क्रेडिट समर्थन जैसी सुविधाएं दी जाएंगी।
🔹 ‘निर्यात दिशा’ का फोकस गैर-वित्तीय सहायता पर होगा — जैसे निर्यात गुणवत्ता और अनुपालन समर्थन, अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग व पैकेजिंग सहायता, ट्रेड फेयर में भागीदारी, वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक समर्थन, अंतर्देशीय परिवहन प्रतिपूर्ति, और क्षमता निर्माण एवं व्यापार खुफिया पहल।
EPM मौजूदा ब्याज समानिकीकरण योजना (Interest Equalisation Scheme - IES) और मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (MAI) जैसी योजनाओं को एकीकृत करेगा, ताकि उन्हें आधुनिक व्यापारिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सके।
यह मिशन उन संरचनात्मक चुनौतियों को सीधे संबोधित करेगा जो भारतीय निर्यात को सीमित करती हैं — जैसे महंगा और सीमित व्यापार वित्त, अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने की ऊँची लागत, अपर्याप्त निर्यात ब्रांडिंग और खंडित बाज़ार पहुँच। साथ ही, यह भीतरी क्षेत्रों और कम निर्यात-घनत्व वाले इलाकों के निर्यातकों को लॉजिस्टिक सहायता भी प्रदान करेगा।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) को मिशन का कार्यान्वयन एजेंसी बनाया गया है। आवेदन से लेकर भुगतान तक की पूरी प्रक्रिया एकीकृत डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से संचालित होगी, जो मौजूदा व्यापारिक प्रणालियों से जुड़ा रहेगा।
With inputs from IANS