
नई दिल्ली — क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष (FY26) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई औसतन 2.5 प्रतिशत रहने की संभावना है। साथ ही, वैश्विक स्तर पर अनिश्चित परिस्थितियों के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भविष्य में ब्याज दरों पर फैसले लेने के लिए आंकड़ों पर आधारित रुख बनाए रखेगा।
रिपोर्ट में बताया गया कि नवंबर में सीपीआई महंगाई बढ़कर 0.7 प्रतिशत हो गई, जो अक्टूबर में 0.3 प्रतिशत थी। यह बढ़ोतरी खाद्य एवं पेय पदार्थों की श्रेणी में मंद पड़ती अपस्फीति (डिफ्लेशन) और ईंधन व बिजली (फ्यूल एंड लाइट) महंगाई में तेजी के कारण दर्ज की गई।
सोने को छोड़कर कोर महंगाई — जिसे मांग-पक्ष के मूल्य दबाव को मापने और वस्तु एवं सेवा कर (GST) युक्तिकरण के प्रभाव का आकलन करने का बेहतर संकेतक माना जाता है — नवंबर में मामूली रूप से घटकर 2.5 प्रतिशत रही, जो अक्टूबर में 2.6 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट के अनुसार, यह गिरावट बड़े पैमाने पर उपयोग की जाने वाली उपभोक्ता वस्तुओं पर कम जीएसटी दरों के प्रभाव के लगातार पास-थ्रू के कारण आई।
हालांकि, सोने की महंगाई में तेज उछाल (नवंबर में 58.5 प्रतिशत, जबकि अक्टूबर में 57.8 प्रतिशत) के चलते कुल कोर महंगाई 4.3 प्रतिशत पर स्थिर बनी रही।
खाद्य एवं पेय पदार्थों की श्रेणी में लगातार तीसरे महीने अपस्फीति बनी रही, लेकिन इसकी तीव्रता कम हुई। विशेष रूप से खाद्य सूचकांक में अपस्फीति घटकर -3.9 प्रतिशत रह गई, जो अक्टूबर में -5.0 प्रतिशत थी। इसका कारण सब्जियों और दालों में अपस्फीति का धीमा होना है, क्योंकि बेस इफेक्ट का असर कम हो रहा है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि गैर-मादक पेय पदार्थों तथा तैयार भोजन, स्नैक्स और मिठाइयों को जीएसटी दरों में कटौती का लाभ मिला है।
क्रिसिल के अनुसार, महंगाई का असर अलग-अलग आय वर्गों पर अलग तरह से पड़ता है, क्योंकि खाद्य, ईंधन और कोर श्रेणियों पर खर्च का अनुपात भिन्न होता है। कम आय वाले परिवारों की उपभोग टोकरी में खाद्य और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं का हिस्सा अधिक होता है।
रिपोर्ट में कहा गया, “नवंबर में खाद्य श्रेणी में अपस्फीति बने रहने के कारण ग्रामीण गरीब वर्ग, जिनकी खपत में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, को सबसे कम महंगाई का सामना करना पड़ा।”
रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे खाद्य वस्तुओं पर बेस इफेक्ट खत्म होगा, हेडलाइन सीपीआई में हल्की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। वहीं, वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कमजोर कीमतें ईंधन महंगाई को नियंत्रित रखेंगी, जबकि जीएसटी दरों में कटौती कोर महंगाई को समर्थन देती रहेगी।
With inputs from IANS