
नई दिल्ली। वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने सोमवार को कहा कि भारत और अमेरिका के बीच शुल्क कम करने को लेकर एक अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। हालांकि, उन्होंने इस संबंध में किसी निश्चित समय-सीमा की घोषणा करने से परहेज किया।
यहां पत्रकारों से बातचीत में वाणिज्य सचिव ने कहा, “हम प्रारंभिक ढांचे वाले समझौते को अंतिम रूप देने के काफी करीब हैं, लेकिन मैं इसके लिए कोई समय-सीमा तय नहीं करना चाहता।”
उन्होंने बताया, “अब तक अमेरिका के साथ छह दौर की बातचीत हो चुकी है, जिनमें द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के साथ-साथ पारस्परिक शुल्क घटाने से जुड़े अंतरिम समझौते पर चर्चा की गई है। यह अपेक्षा है कि दोनों देश पारस्परिक शुल्क में कटौती को लेकर किसी समझौते पर पहुंच सकेंगे।”
अग्रवाल ने कहा कि अमेरिकी उप व्यापार प्रतिनिधि (डिप्टी यूएसटीआर) की भारत यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार संबंधों की समीक्षा करना और बीटीए व प्रारंभिक ढांचे वाले समझौते की स्थिति का आकलन करना था।
इस बीच, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) जेमीसन ग्रीर ने भी हाल ही में कहा था कि प्रस्तावित व्यापार समझौते के तहत अमेरिका को भारत की ओर से अब तक के “सबसे अच्छे प्रस्ताव” प्राप्त हुए हैं। वाशिंगटन में सीनेट की विनियोग उपसमिति की सुनवाई के दौरान उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अमेरिका से कुछ कृषि जिंसों—जैसे मक्का, सोयाबीन, गेहूं और कपास—के भारत में निर्यात को लेकर वहां विरोध मौजूद है।
अमेरिकी अधिकारियों द्वारा भारत पर अमेरिका में चावल की “डंपिंग” के आरोपों से जुड़े सवाल पर प्रतिक्रिया देते हुए अग्रवाल ने कहा, “अमेरिका को भारत के 80 प्रतिशत से अधिक चावल निर्यात बासमती चावल के होते हैं, जिनकी कीमत सामान्य चावल से अधिक होती है। ऐसे में डंपिंग का कोई मामला नहीं बनता। इसके अलावा चावल पर पहले से ही 50 प्रतिशत शुल्क लागू है, इसलिए फिलहाल अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने की संभावना नहीं दिखती।”
पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच भी टेलीफोन पर बातचीत हुई थी। यह बातचीत अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के व्यापार वार्ता के लिए दिल्ली दौरे के बाद हुई।
इस बीच, केंद्र सरकार ने अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए दंडात्मक शुल्कों के प्रभाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें जीएसटी दरों में कटौती, नए निर्यात बाजारों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन पैकेज और श्रम सुधार शामिल हैं।
भारत अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने की दिशा में भी सक्रिय रूप से काम कर रहा है। इस रणनीति के तहत इंजीनियरिंग उत्पादों, फार्मा, कृषि और रसायन सहित लगभग 300 उत्पादों की पहचान की गई है, जिन्हें रूस को निर्यात किया जा सकता है। भारत और रूस ने वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
With inputs from IANS