
मुंबई — अभिनेत्री और कंटेंट क्रिएटर प्राजक्ता कोली का मानना है कि डिजिटल स्पेस धीमा होने के बजाय पहले से कहीं ज़्यादा व्यापक, तेज़ और अनिश्चित हो गया है। वे कहती हैं कि पिछले एक दशक में डिजिटल दुनिया बिल्कुल बदल चुकी है।
सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर-डॉमिनेटेड होने के बीच कंटेंट क्रिएटर्स की शेल्फ लाइफ पर सवाल पूछे जाने पर प्राजक्ता ने IANS से कहा: “मुझे नहीं लगता। और मैं यह भी नहीं मानती कि यह कम हुआ है। यह विकसित हुआ है। जब हमने 10–11 साल पहले शुरुआत की थी, तब सब कुछ लॉन्ग-फॉर्म कंटेंट के बारे में था। अब अटेंशन स्पैन कम हो गए हैं और प्लेटफ़ॉर्म बढ़ गए हैं।”
उन्होंने बताया कि कैसे दर्शकों का ध्यान कम समय तक टिकता है और प्लेटफ़ॉर्म की संख्या बढ़ने से एक बिल्कुल अलग तरह की मांग पैदा हो गई है। 2017 में भारत में आए डिजिटल बूम का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसके बाद यह इकोसिस्टम लगातार बढ़ता गया।
उन्होंने कहा, “2017 में भारत में डिजिटल बूम के बाद हम आज ऐसे मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां काम पहले से कहीं ज़्यादा है। हमारे पास जितने क्रिएटर्स आज हैं, उतने पहले कभी नहीं थे।”
“यही वजह है कि भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था बन चुका है। दुनिया की हर कंपनी हम पर नज़र रख रही है और हमारे साथ काम करना चाहती है।”
क्रिएटर जर्नी को अनिश्चित बताते हुए उन्होंने कहा कि इस इंडस्ट्री में कोई तय रोडमैप नहीं होता।
उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि यहां कोई शेल्फ लाइफ है, क्योंकि यह मेरी निजी राय है। हममें से किसी के पास इसका रोडमैप नहीं है। यह बहुत अनप्रेडिक्टेबल है। यह एक रोलरकोस्टर है। कभी लगता है कि वीडियो चल रहे हैं, जीवन सेट है। फिर चौथा वीडियो ठप हो जाता है। इस पागलपन में कोई पैटर्न नहीं है, कोई रिद्म नहीं है। आपको खुद ही अपना रास्ता बनाना पड़ता है।”
प्राजक्ता के लिए सबसे अहम रहा — बदलते समय के अनुसार खुद को ढालना।
उन्होंने कहा, “इसीलिए मेरे लिए यह समझना बहुत ज़रूरी था कि कब क्या काम कर रहा है, कब नहीं कर रहा, और फिर नई चीज़ों की ओर पिवट करना। पिछले 10 साल में यही सबसे महत्वपूर्ण रहा है।”
With inputs from IANS