
नई दिल्ली- लंबे समय तक कृत्रिम मिठास या लो-कैलोरी और नो-कैलोरी स्वीटनर्स का सेवन, जिनका इस्तेमाल अधिकतर मधुमेह के रोगी करते हैं, दिमागी क्षमताओं पर नकारात्मक असर डाल सकता है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि इनका लगातार उपयोग संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट (cognitive decline) का कारण बन सकता है।
ब्राज़ील के यूनिवर्सिदादे डी साओ पाउलो के शोधकर्ताओं ने लगभग 12,000 मरीजों का विश्लेषण किया, जो आमतौर पर प्रयुक्त कृत्रिम स्वीटनर्स जैसे एस्पार्टेम, सैकरीन, ज़ाइलिटॉल, एरिथ्रिटॉल, सोर्बिटॉल, टैगाटोज़ और एसेसल्फ़ेम के का उपयोग करते हैं।
अध्ययन के नतीजे ‘न्यूरोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित हुए। इसमें पाया गया कि जो लोग इन कृत्रिम मिठास का सबसे अधिक सेवन करते हैं, उनमें सोचने और याद रखने की क्षमता में सबसे ज्यादा गिरावट आई। यह गिरावट लगभग 62 प्रतिशत रही, जबकि कम मात्रा में सेवन करने वालों में यह कम पाई गई। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह गिरावट दिमाग़ की उम्र को लगभग 1.6 साल बढ़ाने के बराबर है।
एम्स, दिल्ली के न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. मंजीरी त्रिपाठी ने आईएएनएस से कहा, “हमें पता है कि शक्कर और उसके विकल्प दोनों ही मधुमेह और कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं। ये मस्तिष्क की रक्त कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए इसका उपयोग सीमित करना चाहिए।”
अध्ययन में सामने आया कि जो लोग कृत्रिम मिठास का मध्यम उपयोग करते हैं, उनमें सोचने और याद रखने की क्षमता में 35 प्रतिशत तेजी से गिरावट आई, और उनकी वर्बल फ्लुएंसी (बोलने की क्षमता) में 110 प्रतिशत तेजी से गिरावट देखी गई। वहीं, जो लोग इनका अधिकतम सेवन करते हैं, उनमें सोचने और याद रखने की क्षमता में 62 प्रतिशत ज्यादा गिरावट और बोलने की क्षमता में 173 प्रतिशत ज्यादा गिरावट देखी गई।
डॉ. अंशु रोहतगी, उपाध्यक्ष (न्यूरोलॉजी), एक स्थानीय अस्पताल से जुड़ी विशेषज्ञ, ने कहा कि यह असर सबसे ज्यादा डायबिटीज़ मरीजों में देखने को मिलता है, जो चिंता का विषय है क्योंकि मधुमेह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
उन्होंने आगे बताया कि इन शुगर सब्स्टीट्यूट्स (चीनी विकल्पों) का लगातार संपर्क दिमाग को ज्यादा संवेदनशील बना सकता है। “ये कृत्रिम मिठास संभवतः न्यूरो-इंफ्लेमेशन का कारण बन रही हैं, जिससे दिमागी क्षमताओं में कमी आ रही है। दूसरी वजह यह भी हो सकती है कि ये आंतों के माइक्रोबायोम को बदल रही हों,” उन्होंने आईएएनएस से कहा।
हालांकि, चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज़ रिसर्च फ़ाउंडेशन (MDRF) के नेतृत्व में 2024 में किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि अगर रोज़मर्रा के पेय पदार्थों जैसे कॉफी और चाय में साधारण चीनी (सुक्रोज़) की जगह थोड़ी मात्रा में प्राकृतिक और कृत्रिम नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स (NNS) जैसे सुक्रालोज़ का उपयोग किया जाए, तो इसका ब्लड शुगर स्तर या HbA1c पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
यह अध्ययन ‘डायबिटीज़ थेरेपी’ जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें यह भी पाया गया कि जो लोग सुक्रालोज़ का इस्तेमाल पैलेट, लिक्विड या पाउडर रूप में करते थे, उनमें वज़न, कमर की माप और बॉडी मास इंडेक्स (BMI) में हल्का सुधार देखने को मिला।
साल 2023 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी एनएनएस (NNS) के उपयोग को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और आम जनता के बीच चिंता जताई थी, यहाँ तक कि मधुमेह रोगियों के लिए भी।
With inputs from IANS