
नई दिल्ली- क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग मोटापे के बावजूद अपेक्षाकृत स्वस्थ रहते हैं, जबकि अन्य लोग डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं? एक अध्ययन के अनुसार, इसकी वजह जेनेटिक (आनुवंशिक) अंतर हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम, जिसमें अमेरिका के माउंट साइनाई की आइकान स्कूल ऑफ़ मेडिसिन और डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ शामिल थे, ने 4,52,768 लोगों के जेनेटिक डेटा का विश्लेषण किया। इसमें जीनोम के 205 हिस्सों में ऐसे वैरिएंट पाए गए जो अधिक बॉडी फैट से जुड़े थे, लेकिन साथ ही बेहतर मेटाबॉलिक स्वास्थ्य भी प्रदान करते थे।
इन खोजों के आधार पर वैज्ञानिकों ने एक जेनेटिक रिस्क स्कोर तैयार किया, जो इन वैरिएंट्स के असर को जोड़ता है। जिन लोगों के स्कोर अधिक थे, वे मोटापे से अधिक प्रभावित हुए, लेकिन उनमें ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज़ या हृदय रोग जैसी जटिलताओं का खतरा अपेक्षाकृत कम था। इसका कारण आंशिक रूप से यह है कि अलग-अलग व्यक्तियों में वसा कोशिकाएँ अलग तरह से काम करती हैं।
महत्वपूर्ण बात यह रही कि ये सुरक्षात्मक जेनेटिक प्रभाव बच्चों में भी दिखाई दिए। जिन बच्चों में ये वैरिएंट मौजूद थे, उनमें मोटापा तो विकसित हुआ, लेकिन मेटाबॉलिक बीमारियों के शुरुआती लक्षण नहीं दिखे। यह अध्ययन नेचर मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ।
अध्ययन से जुड़ी नथाली शामी ने कहा, “हमारे शोध से पता चलता है कि मोटापा एक ही तरह की स्थिति नहीं है, बल्कि इसके अलग-अलग उपप्रकार (सबटाइप्स) होते हैं, जिनमें से हर एक के अपने जोखिम हैं। इन जेनेटिक अंतर को समझकर हम यह जान सकते हैं कि अलग-अलग लोगों में मोटापा क्यों अलग स्वास्थ्य परिणाम देता है।”
शोध में मोटापे के आठ अलग-अलग उपप्रकार पहचाने गए, जो अलग-अलग स्वास्थ्य जोखिमों से जुड़े थे। शामी ने कहा, “इन जानकारियों से डॉक्टर यह अनुमान लगाने में सक्षम होंगे कि किन मरीजों में जटिलताओं का खतरा अधिक है और कौन से उपचार नए जेनेटिक सुरक्षात्मक प्रभावों की नकल कर सकते हैं।”
हालाँकि, शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि इसका मतलब यह नहीं है कि मोटापा हानिरहित है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ अलबामा, बर्मिंघम के प्रोफेसर झे वांग ने कहा, “ज्यादातर मोटापे से ग्रस्त लोगों को अब भी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और आहार तथा व्यायाम जैसे जीवनशैली कारक समग्र स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम हैं।”
यह अध्ययन यूके बायोबैंक के डेटा पर आधारित था, जिसमें यूरोपीय वंश वाले लोग शामिल थे। शोधकर्ता अब इसे अधिक विविध जनसंख्या पर भी लागू करने की योजना बना रहे हैं।
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रूथ लूस ने कहा, “इन निष्कर्षों से ऐसे नए बायोलॉजिकल मार्गों का पता चलता है जो मोटापे को उससे जुड़ी बीमारियों से अलग करते हैं। यह व्यक्तिगत देखभाल, बेहतर लक्षित उपचार और शुरुआती रोकथाम रणनीतियों का रास्ता खोल सकता है — वह भी बचपन से ही।”
With inputs from IANS