
नई दिल्ली- आम तौर पर कुपोषण को पोषण की कमी से जोड़ा जाता है, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह मोटापा और डायबिटीज़ जैसी गंभीर बीमारियों का भी बड़ा कारण बन रहा है।
यूनिसेफ के अनुसार, 2025 में पहली बार विश्व स्तर पर स्कूली बच्चों और किशोरों में मोटापे की दर कम वज़न वाले बच्चों से अधिक हो गई। यह बदलाव न केवल बच्चों बल्कि समुदायों और राष्ट्रों के भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है।
यूनिसेफ की चाइल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट में बताया गया है कि अस्वस्थ भोजन का माहौल दुनिया भर में बच्चों और किशोरों में मोटापा और अधिक वजन की समस्या को बढ़ा रहा है।
आईएमए कोचीन की वैज्ञानिक समिति के चेयरमैन डॉ. राजीव जयदेवन ने आईएएनएस से कहा:
“जब हम कुपोषण की बात करते हैं, तो आमतौर पर हमें कमजोर और दुबले बच्चे या वयस्क दिखाई देते हैं। लेकिन आज की दुनिया में कुपोषण मोटापे का कारण भी बन सकता है। गरीब तबके के लोग, जिनकी जागरूकता कम होती है, सस्ती परंतु उच्च शर्करा और वसा वाले खाद्य पदार्थ खरीदते हैं, जिनमें पोषण बहुत कम होता है।”
उन्होंने बताया कि सॉफ्ट ड्रिंक्स और तैलीय स्नैक्स जैसी चीज़ें सस्ती और आसानी से उपलब्ध होती हैं, लेकिन यही मोटापा और डायबिटीज़ को बढ़ावा देती हैं।
डॉ. जयदेवन ने यह भी कहा कि कुपोषित माताओं से जन्मे बच्चे बड़े होकर अधिक भोजन उपलब्ध होने पर मोटापे की चपेट में जल्दी आते हैं।
इस बात की पुष्टि एक हालिया अध्ययन से भी हुई है, जो सेल मेटाबॉलिज़्म पत्रिका में प्रकाशित हुआ। भारतीय शोधकर्ताओं ने 50 पीढ़ियों तक चूहों में कुपोषण का प्रभाव देखा और पाया कि उनके शरीर में इंसुलिन का स्तर अधिक था, जबकि विटामिन B12 और फोलेट कम थे। अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि कुपोषण से होने वाले एपिजेनेटिक बदलाव पीढ़ी दर पीढ़ी बने रहते हैं और बाद में सामान्य आहार मिलने पर भी आसानी से ठीक नहीं होते।
शिव नादर यूनिवर्सिटी, दिल्ली-एनसीआर के स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज़ के डीन और अध्ययन के सह-लेखक डॉ. संजीव गालांडे ने बताया:
“भारत में कुपोषण और मोटापे-डायबिटीज़ के बढ़ते जोखिम को ‘डबल बर्डन ऑफ़ मालन्यूट्रिशन’ कहा जाता है। बचपन में कुपोषण शरीर को ऊर्जा बचाने, चर्बी जमा करने और कम मांसपेशी विकसित करने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि जब ऐसे लोग बाद में उच्च कैलोरी वाले आहार और निष्क्रिय जीवनशैली अपनाते हैं, तो उनमें मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।”
विशेषज्ञों का कहना है कि व्यायाम की कमी, धूम्रपान और शराब सेवन भी इस जोखिम को और बढ़ाते हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मोटापा और डायबिटीज़ की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए पौष्टिक और किफायती भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी और अस्वस्थ खाद्य पदार्थों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगानी होगी।
With inputs from IANS