
राँची: योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (वाईएसएस), राँची आश्रम में 30 दिसम्बर को गीता जयंती — श्रीमद्भगवद्गीता के प्राकट्य की पावन वर्षगांठ — बड़े श्रद्धा और आध्यात्मिक उत्साह के साथ मनाई गई।
गीता जयंती (जो इस वर्ष 1 दिसम्बर को पड़ी) विश्वभर में उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति में मनाई जाती है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अर्जुन को गीता का दिव्य और अमर उपदेश प्रदान किया था। यह दिन गीता के उस सार्वभौमिक संदेश की याद दिलाता है, जो मानव को धर्मानुष्ठान, आंतरिक संतुलन और आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रेरित करता है।
उत्सव के अंतर्गत, वाईएसएस संन्यासी स्वामी ईश्वरानन्द गिरि द्वारा “निष्काम कर्म : आत्मा की मुक्ति का मार्ग” विषय पर एक विशेष ऑनलाइन सीधा प्रसारण प्रवचन दिया गया। परमहंस योगानन्द द्वारा ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता में प्रस्तुत गूढ़ व्याख्याओं के आधार पर स्वामीजी ने अध्याय 2 के श्लोक 47 से 51 तक का सरल एवं गहन विवेचन किया। उन्होंने बताया कि गीता हमें जीवन के कर्तव्यों में पूर्ण मन से संलग्न रहते हुए भी उनके फलों से अनासक्त रहने का मार्ग सिखाती है।
योगानन्दजी की शिक्षाओं को उजागर करते हुए स्वामीजी ने कहा कि सच्चा योगी उत्साह, निःस्वार्थ भाव और मानसिक संतुलन के साथ कार्य करता है — यह समझते हुए कि समस्त कर्मों के पीछे ईश्वर ही वास्तविक कर्ता हैं। उन्होंने योगानन्दजी द्वारा योग की परिभाषा — “उचित कर्म करने की कला” — का उल्लेख करते हुए बताया कि सही दृष्टिकोण, भक्ति और आंतरिक समर्पण से ही कर्म आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग बनते हैं।
इस विशेष प्रवचन में परमहंस योगानन्द के अनेक भक्त, योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के सदस्य तथा अन्य कई आध्यात्मिक साधक शामिल हुए। सैकड़ों लोग राँची आश्रम में उपस्थित रहे, जबकि हजारों श्रद्धालुओं ने वाईएसएस के यूट्यूब चैनल के माध्यम से सीधे प्रसारण का लाभ उठाया, जो गीता के सनातन उपदेशों के प्रति व्यापक आकर्षण को दर्शाता है।
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