सानिया मिर्ज़ा और पीवी सिंधु का संदेश: 'विश्वास और समर्थन से बदल सकता है महिला खिलाड़ियों का भविष्य'By Admin Thu, 07 August 2025 06:15 AM

मुंबई — जब 1997 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया था, तब हर मैच के लिए उन्हें सिर्फ ₹1000 का मैच फीस मिलता था। वहीं, 2025 में महिला प्रीमियर लीग (WPL) की मिनी-नीलामी में सिमरन शेख को ₹1.90 करोड़ और 16 वर्षीय जी. कमलिनी को ₹1.60 करोड़ में खरीदा गया।

आज मीडिया और प्रसारक महिला खेलों को प्राथमिकता देने लगे हैं, यहां तक कि पुरुषों के बड़े टूर्नामेंट्स के बीच भी — जैसे WPL 2025 को पुरुषों की चैंपियंस ट्रॉफी के बीच प्रसारित किया गया।

हालांकि, समाज के नजरिए में बदलाव, महिला खेलों को और दर्शकों तक पहुंचाना, और कॉर्पोरेट जगत का विश्वास जीतना अभी भी बाकी है।

Capri Sports Foundation द्वारा आयोजित "The Sports Women Huddle 2025 – Invest in Her" कार्यक्रम में इस विषय पर चर्चा की गई। यह संस्था WPL टीम यूपी वॉरियर्ज़, क्रो कबड्डी लीग की बंगाल वॉरियर्ज़ और महिला फुटबॉल टीम वॉरियर्ज़ FC की मालिक है।

पैनल चर्चा में शामिल रहीं — डबल्स टेनिस में मल्टीपल ग्रैंड स्लैम विजेता सानिया मिर्ज़ा, दो बार की ओलंपिक पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु, 2016 पैरालंपिक सिल्वर मेडलिस्ट डॉ. दीपा मलिक, और भारत की पहली महिला रेसर अतीका मीर, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय रोटैक्स मैक्स चैलेंज में जीत दर्ज की।

इन खिलाड़ियों ने अपने अनुभव साझा किए, संघर्षों से उबरकर सफलता पाने की यात्रा पर बात की और बताया कि कैसे महिला खेलों को देश में और मज़बूत किया जा सकता है।

सानिया मिर्ज़ा ने कहा,
"यह सच है कि यह एक पुरुष प्रधान दुनिया है, और भारतीय खेलों में तो क्रिकेट का बोलबाला है। लेकिन हमें अपने लिए लड़ना होगा, दूसरों के लिए नहीं।"

उन्होंने कहा,
"महिला खिलाड़ियों के लिए चुनौती ये है कि अगर हम आत्मविश्वासी और आक्रामक दिखें तो लोग कहते हैं – एटीट्यूड है। और अगर हम विनम्र रहें, तो कहते हैं – किलर इंस्टिंक्ट नहीं है।"

"इसलिए, जीत का कोई तय तरीका नहीं है। हमें खुद को वैसे पेश करना चाहिए जैसे हम हैं, और अपनी शर्तों पर आगे बढ़ना चाहिए।"

पीवी सिंधु ने भी सानिया की बात से सहमति जताते हुए कहा,
"आख़िर में हम खुद को ही रिप्रेज़ेंट करते हैं। सोशल मीडिया पर हारने पर आपको गिराया जाता है और जीतने पर आसमान पर चढ़ा दिया जाता है। लेकिन आपको इस सब की परवाह नहीं करनी चाहिए।"

"आपके मन की शांति सबसे ज़रूरी है। अगर आप दूसरों की सोच को लेकर सोचते रहेंगे, तो अंत में वही आपको तोड़ देगा।"

दीपा मलिक ने कहा,
"अगर कोई विकलांग लड़की छोटे गांव से निकलकर ओलंपिक या पैरालंपिक में मेडल जीतती है, तो पूरा गांव बदल जाता है। मेरे साथ ऐसा ही हुआ। 2016 में जब मैंने भारत के लिए पहला महिला पैरालंपिक पदक जीता, तो आज पेरिस 2024 में कई महिलाएं मेडल जीत रही हैं।"

उन्होंने यह भी बताया कि कैसे विकलांग खिलाड़ियों के लिए पुरुष सहयोगी (जैसे पति, कोच) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं — जैसे, प्रतियोगिता के दौरान उन्हें व्हीलचेयर में सही ढंग से स्ट्रैप करने में मदद करना ताकि कोई गलती न हो।

अंत में, सानिया, सिंधु और दीपा ने उभरते खिलाड़ियों को यह सलाह दी कि "हार से घबराएं नहीं, क्योंकि शुरुआत में आप कई बार हारेंगे।"

सानिया ने कहा,
"इतनी बार हारो कि फिर हारने से डर ही न लगे।"

 

With inputs from IANS