
नई दिल्ली- भारत में बढ़ती बुजुर्ग आबादी और कृत्रिम (आर्टिफ़िशियल) जोड़ों की विफलता के साथ, रिविजन घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए कुशल सर्जनों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, विशेषज्ञों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
रिविजन घुटना या कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी, जिसे रिविजन आर्थ्रोप्लास्टी भी कहा जाता है, तब की जाती है जब लगाया गया कृत्रिम जोड़ ढीला पड़ जाए, घिस जाए या काम करना बंद कर दे।
इन कृत्रिम घुटना और कूल्हे के जोड़ों पर लगातार अधिक दबाव और घिसावट का असर हो रहा है, जिसके कारण इनकी आयु घटकर लगभग 20 से 25 वर्ष रह गई है।
एआईआईएमएस के आर्थोपेडिक्स विभाग के प्रोफेसर विजय कुमार ने आईएएनएस से कहा, “भारत में पिछले 15-20 वर्षों में बढ़ती डिजेनरेटिव आर्थराइटिस की वजह से बड़ी संख्या में बुजुर्ग मरीजों ने जॉइंट रिप्लेसमेंट करवाया है। इसलिए आने वाले वर्षों में रिविजन सर्जरी की संख्या बढ़ेगी, क्योंकि समय के साथ इम्प्लांट घिस सकते हैं, ढीले हो सकते हैं, संक्रमित हो सकते हैं या कोई जटिलता उत्पन्न हो सकती है।”
जेपीएनए ट्रॉमा सेंटर, एआईआईएमएस, दिल्ली के आर्थोपेडिक्स विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. सामर्थ मित्तल ने कहा, “भारत में तेजी से बढ़ते उम्रदराज इम्प्लांट्स के बीच विशेषज्ञ प्रशिक्षण की कमी के कारण मरीजों को समय से पहले इम्प्लांट फेल्योर, बार-बार सर्जरी, बढ़ते इलाज के खर्च और लंबी अवधि की कार्यात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।”
तीन दिवसीय रिविजन आर्थ्रोप्लास्टी कॉन्फ्रेंस (RAC) 2025 के दौरान उपस्थित स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि रिविजन सर्जरी सामान्य (प्राइमरी) जॉइंट रिप्लेसमेंट की तुलना में कहीं अधिक जटिल और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होती है, जिसके लिए अतिरिक्त कौशल और अनुभव की आवश्यकता होती है।
कुमार ने बताया कि रिविजन सर्जरी की कठिनाई अधिक होती है क्योंकि इसमें शरीर के अंदर पहले से एक इम्प्लांट मौजूद रहता है। विफल इम्प्लांट अक्सर हड्डी को नुकसान पहुंचाता है, जिसे सुधारने के लिए विशेष तकनीकों, विस्तृत योजना और उच्च स्तर के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि यदि भारत में रिविजन सर्जरी से जुड़े विशेषज्ञों की कमी दूर नहीं हुई तो समय से पहले इम्प्लांट दोबारा फेल होने, कई बार सर्जरी कराने की मजबूरी, महंगा उपचार और दीर्घकालिक विकलांगता जैसी समस्याएँ बढ़ेंगी।
शहर के एक प्रमुख अस्पताल में रोबोटिक घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. (प्रो.) अनिल अरोड़ा ने कहा, “भारत ऐसे दौर में प्रवेश कर चुका है जहाँ प्रशिक्षित ‘रिविजन’ घुटना और कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जन अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुके हैं।”
अरोड़ा, जो RAC 2025 के आयोजनाध्यक्ष भी हैं, ने कहा, “देश में कुशल रिविजन सर्जनों की भारी कमी है। रिविजन सर्जरी के लिए उन्नत इम्प्लांट्स, आधुनिक उपकरण, हड्डी क्षति के लिए सटीक योजना, और असैप्टिक लूसेनिंग, इम्प्लांट के घिसने, परिप्रोस्थेटिक फ्रैक्चर, संक्रमण और अस्थिरता जैसी जटिलताओं से निपटने की विशेषज्ञ क्षमता की आवश्यकता होती है।”
With inputs from IANS