अध्ययन: 30 मिनट से अधिक Instagram, Snapchat उपयोग से बच्चों का ध्यान भंग हो सकता हैBy Admin Mon, 08 December 2025 06:33 AM

नई दिल्ली - एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जो बच्चे रोज़ 30 मिनट से अधिक Instagram, Snapchat, Facebook जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं, उनमें धीरे-धीरे ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी देखी जा रही है। यह निष्कर्ष 8,000 से अधिक बच्चों पर किए गए शोध में सामने आया, जिनकी उम्र लगभग 10 से 14 वर्ष के बीच थी।

स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट और अमेरिका के ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने स्क्रीन उपयोग और ध्यान-अभाव/अधिक सक्रियता विकार (ADHD) से जुड़े लक्षणों के बीच संभावित संबंध की जांच की।

अध्ययन में 9 से 14 वर्ष की उम्र के 8,324 बच्चों को 4 वर्षों तक ट्रैक किया गया। इन बच्चों द्वारा सोशल मीडिया, टीवी/वीडियो देखने और वीडियो गेम खेलने में बिताए गए समय को नोट किया गया—जो 9 वर्ष की उम्र में लगभग 30 मिनट प्रतिदिन से बढ़कर 13 वर्ष की उम्र में 2.5 घंटे प्रतिदिन तक पहुँच गया।

अध्ययन में पाया गया कि Instagram, Snapchat, TikTok, Facebook, X (पूर्व में Twitter) और Messenger जैसे प्लेटफॉर्म पर अधिक समय बिताने वाले बच्चों में धीरे-धीरे ध्यान भंग (inattention) के लक्षण विकसित होने लगे।

हालांकि टीवी देखने और वीडियो गेम खेलने वाले बच्चों में ऐसा कोई संबंध नहीं पाया गया।

यह अध्ययन Pediatrics Open Science में प्रकाशित हुआ है।

कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के न्यूरोसाइंस विभाग में संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान के प्रोफेसर टोर्केल क्लिंगबर्ग के अनुसार,
“हमारा अध्ययन संकेत देता है कि खास तौर पर सोशल मीडिया बच्चों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को प्रभावित करता है।”

उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया लगातार नोटिफिकेशन और संदेशों के रूप में ध्यान भटकाता रहता है। यहां तक कि संदेश आया है या नहीं, यह सोच भी मानसिक विचलन पैदा करती है, जिससे ध्यान केंद्रित रखना मुश्किल हो जाता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह प्रभाव न तो सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से प्रभावित था और न ही ADHD की आनुवंशिक प्रवृत्ति से।

इसके अलावा, पहले से ध्यान भंग के लक्षण वाले बच्चों ने सोशल मीडिया का उपयोग अधिक करना शुरू नहीं किया, जिससे यह साबित होता है कि सोशल मीडिया उपयोग से लक्षण बढ़ते हैं—लक्षण उपयोग बढ़ाने का कारण नहीं हैं।

अध्ययन में हाइपरएक्टिव या आवेगपूर्ण व्यवहार में कोई वृद्धि नहीं देखी गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि व्यक्तिगत स्तर पर प्रभाव भले ही छोटा हो, लेकिन जनसंख्या स्तर पर यह प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।

 

With inputs from IANS