भारतीय वैज्ञानिकों ने न्यूरोडिजेनेरेटिव रोगों के इलाज की संभावनाओं वाले दवाओं की खोज कीBy Admin Wed, 21 May 2025 06:05 AM

नई दिल्ली: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के एक स्वायत्त संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IASST) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसी दवाओं की खोज की है जिनमें न्यूरोडिजेनेरेटिव रोगों के इलाज की संभावनाएं हैं — जो आज वैश्विक स्तर पर एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बने हुए हैं।

यह अध्ययन प्रतिष्ठित शोध पत्रिका Drug Discovery Today में प्रकाशित हुआ है। इसमें वैज्ञानिकों ने यह दर्शाया है कि पेप्टाइडोमाइमेटिक्स नामक यौगिक अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों में मस्तिष्क की नसों (न्यूरॉन्स) की वृद्धि और सुरक्षा को बढ़ावा देकर इलाज का एक प्रभावी जरिया बन सकते हैं।

पेप्टाइडोमाइमेटिक्स ऐसे कृत्रिम यौगिक होते हैं जो प्राकृतिक प्रोटीन की संरचना की नकल करते हैं। इनका पुनः उपयोग कर न्यूरॉन्स की वृद्धि और जीवन को सहारा देकर न्यूरोडिजेनेरेटिव रोगों के इलाज में नई रणनीति विकसित की जा सकती है।

हालांकि न्यूरोट्रॉफिन्स — जो मस्तिष्क की नसों के अस्तित्व और क्रियाशीलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण प्रोटीन होते हैं — ने इलाज के रूप में संभावनाएं दिखाई हैं, लेकिन उनकी अस्थिरता और जल्दी नष्ट हो जाने की प्रवृत्ति ने उनके प्रभावी उपयोग को सीमित किया है।

IASST के वैज्ञानिक इन कमियों को दूर करने के लिए न्यूरोट्रॉफिन्स की नकल करने वाले कृत्रिम यौगिक पेप्टाइडोमाइमेटिक्स का अध्ययन कर रहे हैं।

प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी के नेतृत्व में शोध टीम ने बताया,

“न्यूरोट्रॉफिन पेप्टाइडोमाइमेटिक्स विशेष जैविक क्रियाओं को लक्षित करने के लिए विकसित किए जाते हैं और ये दवा अनुसंधान में विशेष रूप से उपयोगी साबित हो सकते हैं, खासकर तब जब प्राकृतिक पेप्टाइड्स के साथ जैवउपलब्धता या क्षरण जैसी समस्याएं जुड़ी होती हैं।”

टीम के अनुसार,

“पेप्टाइडोमाइमेटिक्स की एक प्रमुख विशेषता यह है कि ये प्राकृतिक न्यूरोट्रॉफिन्स की तुलना में अधिक स्थिर और जैवउपलब्ध होते हैं, जिससे इन्हें मस्तिष्क तक अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचाया जा सकता है और इनका चिकित्सीय प्रभाव लंबे समय तक बना रह सकता है।”

इसके अलावा, इन यौगिकों को इस प्रकार डिज़ाइन किया जा सकता है कि ये अपने लक्षित रिसेप्टर्स पर अधिक सटीकता से कार्य करें, जिससे दुष्प्रभावों की संभावना कम हो जाती है।

इस शोध में वैज्ञानिकों ने उन सिग्नलिंग मार्गों (signaling pathways) की भी गहराई से जांच की जो न्यूरॉन्स की वृद्धि और सुरक्षा में भूमिका निभाते हैं, साथ ही पेप्टाइडोमाइमेटिक्स के संभावित फार्माकोलॉजिकल लक्ष्यों और उनके चिकित्सीय उपयोगों का अध्ययन किया।

टीम ने यह भी जांचा कि क्या पहले से मौजूद पेप्टाइडोमाइमेटिक दवाओं को कैंसर जैसी अन्य बीमारियों में भी पुनः प्रयोजित किया जा सकता है, और क्या न्यूरोट्रॉफिन्स की नकल पर आधारित नए दवा प्रोटोटाइप विकसित किए जा सकते हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसे-जैसे यह शोध आगे बढ़ेगा, पेप्टाइडोमाइमेटिक्स भविष्य में न्यूरोडिजेनेरेटिव रोगों के उपचार के लिए एक प्रमुख चिकित्सीय रणनीति बन सकते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ियों को इन रोगों से राहत मिलने की नई उम्मीद मिलेगी।

 

With inputs from IANS