सिडनी: ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने स्टैफिलोकोकस ऑरियस (जिसे आमतौर पर गोल्डन स्टैफ कहा जाता है) जैसे खतरनाक सुपरबग से निपटने में बड़ी सफलता हासिल की है। यह सुपरबग हर साल दुनियाभर में दस लाख से अधिक लोगों की जान लेता है।
यह विश्व में अपनी तरह की पहली पहल है, जिसमें वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि गंभीर संक्रमण के दौरान रियल-टाइम जीनोम सीक्वेंसिंग से डॉक्टरों को तेजी से प्रतिरोधक म्यूटेशन की पहचान करने और मरीजों के लिए व्यक्तिगत इलाज तय करने में मदद मिलती है। यह जानकारी शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने दी।
मेलबर्न स्थित पीटर डोहर्टी इंस्टिट्यूट फॉर इन्फेक्शन एंड इम्युनिटी (डोहर्टी इंस्टिट्यूट) के शोधकर्ताओं ने बताया कि यह तकनीक एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को रोकने में भी सहायक होगी।
डोहर्टी इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने सात स्थानीय अस्पतालों के साथ मिलकर यह शोध किया। उन्होंने बताया कि पारंपरिक रूप से अस्पतालों की प्रयोगशालाएं केवल बैक्टीरिया की प्रजाति की पहचान कर पाती हैं, जिससे एंटीबायोटिक प्रतिरोध या आनुवंशिक बदलावों की जानकारी नहीं मिलती।
इसके विपरीत, जीनोम सीक्वेंसिंग पूरे जीनोम का प्रोफाइल प्रदान करती है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि बैक्टीरिया इलाज पर कैसे प्रतिक्रिया देगा।
पहले, बैक्टीरिया में होने वाले बदलावों का अध्ययन आमतौर पर इलाज के वर्षों बाद किया जाता था, लेकिन यह नई विधि डॉक्टरों को संक्रमण के दौरान ही रियल-टाइम में बैक्टीरिया में हो रहे बदलावों की निगरानी की सुविधा देती है और तुरंत इलाज में सुधार के लिए actionable जानकारी उपलब्ध कराती है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि जब उन्होंने संक्रमण की शुरुआत और इलाज विफल होने पर मरीजों से लिए गए गोल्डन स्टैफ के सैंपल की तुलना की, तो एक-तिहाई मामलों में बैक्टीरिया ने ऐसे म्यूटेशन विकसित कर लिए थे जिनसे सामान्य एंटीबायोटिक बेअसर हो गई।
डोहर्टी इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के शोधकर्ता और प्रमुख लेखक स्टेफानो जिउलियरी ने बताया, “एक मरीज में शुरुआती इलाज के बाद संक्रमण पर काबू पा लिया गया था, लेकिन एंटीबायोटिक बंद करने के दो महीने बाद वह दोबारा अस्पताल लौटा। उस समय बैक्टीरिया में प्रतिरोध 80 गुना बढ़ चुका था। लेकिन जीनोमिक विश्लेषण के चलते इलाज को सही ढंग से बदला गया और मरीज पूरी तरह ठीक हो गया।”
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह खोज बैक्टीरियल संक्रमणों के लिए लक्षित उपचार (targeted therapy) की दिशा में एक बड़ा कदम है और भविष्य में ऐसे क्लीनिकल ट्रायल्स की नींव रखती है जो इस पद्धति को अस्पतालों में आम प्रथा बना सकते हैं।
With inputs from IANS