नई दिल्ली – क्या आपको दालें और फलियां खाना पसंद है? एक नए अध्ययन के अनुसार, इनका किण्वन (फर्मेंटेशन) करने से इनमें एंटीऑक्सीडेंट तत्वों की मात्रा बढ़ाई जा सकती है और साथ ही इनकी मधुमेह से लड़ने की क्षमता भी मजबूत होती है।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय अर्बाना-शैंपेन के खाद्य वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है। इसमें यह पाया गया कि जब सूखी खाने योग्य फलियों (जैसे राजमा, मसूर, मटर आदि) को विशेष परिस्थितियों में किण्वित किया गया, तो उनमें घुलनशील प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट क्षमता और एंटी-डायबिटिक गुण उल्लेखनीय रूप से बढ़ गए।
अध्ययन में उन्होंने ब्लैक बीन्स, ब्लैक-आईड पीज़, ग्रीन स्प्लिट पीज़, रेड लेंटिल्स और पिंटो बीन के आटे को अलग-अलग अनुपात में लेकर किण्वन किया। इसमें Lactiplantibacillus plantarum 299v नामक बैक्टीरिया का उपयोग किया गया।
परिणामों में पाया गया कि:
साथ ही, इन खाद्य पदार्थों में घुलनशील प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ी।
विशेष रूप से रेड लेंटिल्स (मसूर दाल) और ग्रीन स्प्लिट पीज़ (हरी मटर) में सबसे अधिक सुधार देखा गया – न केवल एंटीऑक्सीडेंट क्षमता में बल्कि इंसुलिन मेटाबोलिज़्म से जुड़े दो एंजाइम्स को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
शोध की मुख्य लेखिका एंड्रिया जिमेना वाल्डेस-अल्वाराडो ने बताया कि Lp299v एक प्रोबायोटिक बैक्टीरिया है जो आंतों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। उन्होंने कहा,
"किण्वन के बाद यह जीवित रहता है और पाचन प्रक्रिया में सक्रिय रहता है। यह न केवल उत्पाद को संरक्षित करता है बल्कि ऐसे पेप्टाइड्स और अमीनो एसिड भी उत्पन्न करता है जो सामान्य प्रोटीन की तुलना में शरीर में बेहतर अवशोषित होते हैं।"
इसके अतिरिक्त, Lp299v को सूजन घटाने, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने, और आयरन के अवशोषण में सुधार करने के लिए भी जाना जाता है। यह अध्ययन "Antioxidants" नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
फूड साइंस की प्रोफेसर एल्विरा गोंजालेज़ डे मेजिया ने कहा,
"इन फलियों में 18% से 25% तक उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन होते हैं, जिन्हें अकेले या अन्य खाद्य उत्पादों में मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। हमें इनकी प्रोसेसिंग के लिए उचित स्थितियाँ खोजनी होंगी और खाद्य उद्योग को इन्हें डेयरी पेय या मांस के विकल्पों में शामिल करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।"
शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैश्विक खाद्य असुरक्षा, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, और जलवायु परिवर्तन के बीच हमें पौधों पर आधारित आहार की स्थिरता की दिशा में और प्रयास करने होंगे।
With inputs from IANS